व्यंग्य : आओ जाति-जाति खेलें
हम सब अपने को इंसान कहते हैं।पशु -पक्षियों, कीड़े-मकोड़ों से भी बहुत महान। इस धरती माता की शान।ज्ञान औऱ गुणों
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Read Moreआज विश्व में बंधु-भाव का, पतन दिखाई देता है। अपने तक सीमित है मानव, बनता विश्व – विजेता है।। अपना
Read Moreसाहित्य मानव – चरित्र का जीवंत इतिहास है ,तो इतिहास मानव -चरित्र का मुर्दा साहित्य है।’महाभारत’ में भी कहा भी
Read Moreजल से कल है जीव का,जल ही जीवन मीत जल की रक्षा हम करें,समय न जाए बीत।। जल- दोहन दूषण
Read Moreअरे ! छोड़िए भी ‘शादी’ कभी ‘सादी’ हो ही नहीं सकती।’शादी’ के नाम पर कुछ भी प्रदर्शन करने की मनमानी
Read Moreबैंगन जी की हुई सगाई। भिंडी जी ने खुशी मनाई।। मन ही मन आलू गुर्राया। कैसे इसने उसे पटाया।। मुझसे
Read Moreरंग – रँगीली होली आई। छटा – सुहानी ब्रज में छाई।। अपनी -अपनी लें पिचकारी। रंग भरी मारें सब धारी।।
Read Moreगांधी जी के तीन बंदर कुछ महत्त्वपूर्ण संदेश देते हैं।जो बंदर अपनी आँखों को अपने हाथों से बंद किए हुए
Read Moreपृथ्वी लोक में मानव के चार पुरुषार्थों के अंतर्गत धर्म के बाद ‘अर्थ का’ दूसरा स्थान है। धर्म किसी के
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