हिस्सा-ए-बाज़ार न बन, हिम्मत रख लाचार न बन कुछ अपनी भी सोचा कर, सबका खिदमतगार न बन दुश्मन भी रख थोड़े से, सारी दुनिया का यार न बन दिल में भी रख कुछ बातें, चलता फिरता...
हसरत-ए-दिल-ए-बेकरार कहां तक जाती दश्त-ए-तनहाई के उस पार कहां तक जाती मैं ज़मीं पर था तुम कोहसार-ए-गुरूरां पर थे गरीब की ख्वाहिश-ए-दीदार कहां तक जाती मैं तो आया था तुमने हाथ बढ़ाया ही नहीं इकतरफा दोस्ती...
करवाचौथ पर मेरी पत्नी को समर्पित एक कविता :- करवाचौथ बहाना है, बस इतना याद दिलाना है, रात को जब मैं सोती हूँ, हर स्वप्न तुम्हारा होता है, उठते ही आँखों के आगे, ये चेहरा प्यारा...
ये गरज़ की रिश्तेदारियां मेरे शहर की रस्म-ए-आम है, मुफलिसों की कदर नहीं यहां तवंगरों को सलाम है खंजर है हर आस्तीन में और हर निगाह में फरेब है, कोई किसी का नहीं रहा ये मुकाम...
शाम तनहा है और सहर तनहा, उम्र अपनी गई गुज़र तनहा छुप गए साये भी अँधेरों में, रात को हो गया शहर तनहा कोई दस्तक ना कोई आहट है, किसको ढूँढे मेरी नज़र तनहा मंजिलों पर...
ज़रा सी बात में पूरी कहानी ढूँढ लेती है, मुहब्बत हो या नफरत इक निशानी ढूँढ लेती है नज़र कमजोर हो जाए चाहे जितनी बुजुर्गों की, नए किस्सों में पर बातें पुरानी ढूँढ लेती है सहलाती...
दिल्ली में हुए शर्मनाक कांड पर दिल में उत्पन्न हुए आक्रोश से निकली कुछ पंक्तियाँ :- मानवता हो गई मरणासन्न, लोट रही अंगारों पे, घूम रहे हैं भूखे कुत्ते, गलियों में, बाज़ारों में, मेरे देश में...
ज़िंदगी कतरा-कतरा पिघलती रही शाम ढलनी ही थी शाम ढलती रही कुछ ना कहा मैंने लब सिल लिये आँखों के रस्ते हसरत निकलती रही किस्मत में था उसके फक्त इंतज़ार खल्वत-ए-शब में भी शमा जलती रही...
मैं ये जाहिर नहीं करता कि मैं सब याद रखता हूँ पहले भूल जाता था मगर अब याद रखता हूँ भरोसा उठ गया जबसे मेरा इंसानियत पर से महफिल में हर इक बंदे का मजहब याद...
प्राण पंछी है विकल, असह्य मेरी वेदना मौन मुखरित है प्रिये, अकथ्य मेरी वेदना नीर नैनों में भरे मैं,समुद्र तट की ओर आता जलधि का घनघोर गर्जन, तन में कंपन सा उठाता वेग से बहता प्रभंजन,...
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