गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 17/05/2017 गज़ल महफिल की तनहाई से कभी चीख रहे सन्नाटों से, धीरे-धीरे सीख रहा हूँ बचना झूठी बातों से, शाम हुई साये Read More
धर्म-संस्कृति-अध्यात्म *भरत मल्होत्रा 16/05/201717/05/2017 उपवास बहुत दिनों से एक संदेश रोज कहीं ना कहीं से आता है कि *अगर उपवास करने से भगवान खुश होते Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 16/05/2017 गज़ल टेढ़े-मेढ़े रस्तों से गुज़रना भी ज़रूरी था, सुधरने के लिए थोड़ा बिगड़ना भी ज़रूरी था, मंज़िल सामने थी और हमदम Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 15/05/2017 गज़ल खोखले वादों से कब तक जिंदा रखें ईमानों को, जीने की खातिर पैसा भी लाज़िम है इंसानों को, भूखी जनता Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 09/05/2017 गज़ल किसी हसीन कैद को निजात कहते आए हैं, तेरी खुशी के लिए दिन को रात कहते आए हैं, तुम सज़ा Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 05/05/2017 गज़ल आज यादों को करीने से सजाया जाए, इन दीवारों को कोई किस्सा सुनाया जाए, इश्क कैसे बनाता है किसी बुत Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 02/05/2017 गज़ल शाम-ए-गम में जब किस्से पुराने याद आते हैं, सूने दश्त में जैसे दिए कुछ टिमटिमाते हैं, तरोताजा हो उठती हैं Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 29/04/2017 गज़ल कुछ इस तरह तेरी चाहत ने बेकरार किया, आईना देखा भी तो तेरा ही दीदार किया, ============================ इस दीवानगी ने Read More
कविता *भरत मल्होत्रा 27/04/2017 कविता छुपा हुआ है एक दुशासन, शायद मेरे मन में भी, सत्य तो और भी थे लेकिन, मैंने कड़वा ही सत्य Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 21/04/2017 गज़ल दीवानों की दुनिया की ये कैसी रवायत है, उनसे ही मुहब्बत है उनसे ही शिकायत है, दोनों सूरतों में चैन Read More