कविता

सत्यमेव जयते

सत्य की डगर कोई है नहीं आसान बड़ी पथरीली और कांटों से भरा है यह रास्ता चलना नहीं आसान इस डगर पर विरले ही इस पथ के होते हैं अनुगामी बाकी तो है सुविधाभोगी हा आखिर में होती है सत्य विजय की यह ठीक पर धैर्य कितना है यह देखना है वाजिब राजा हरिश्चंद ने […]

कविता

उम्मीद

उम्मीदों के चिराग जलाए रखिए हवा अभी कुछ तेज है चिरागों को इससे बचाएं रखिए चिरागों की लौ न बुझे बस तेल इसमें डालते रहीए रात चाहे कितनी भी लंबी हो हर रात के बाद दिन का उजाला लाजमी है गुजर जाएगा यह तूफा भी बस आप हिम्मत न हारिए यह है हमारे धैर्य की […]

हास्य व्यंग्य

एक व्यंग्य

सोचो आज अगर मार्टिन कूपर ने मोबाइल का आविष्कार न किया होता तो इस लाकडाउन के समय में हमारा क्या हाल हुआ होता। पगला जाते। बाल नोच लेते अपने सिर के । घर पड़े पड़े।सब अपने अपने मुख का शटडाउन करके इसी एक यंत्र के सहारे अपना जीवन यापन कर रहे है । घरों में […]

कविता

घरबंदी

इस घरबंदी के कारण मैं लौट न सका अपने गांव ठहर गया अपने पुत्र के पास वो रहता पुना अपनी गृहस्थी के साथ अच्छा ही हुआ पूरे परिवार को एक साथ रहने का मौका मिल गया उसके नौकरी करने के बाद एक लंबे समय तक रहने का हालाकि करता भी क्या मैं गांव जाकर जी […]

कविता

समुंदर की अजीब दास्तां

इस समुंदर की भी अजीब दास्तां है समेटे है अपने में जहां का खारापन जब बरसता है तो कहां चला जाता है इसका खारापान रिमझिम रिमझिम करके लुटाता है मीठापन जलाता है बदन अपना नुनखुरे पानी से पर आह भी निकलती नहीं नुनखुरा है फिर भी सारी नदियां बेताब है मिलने को इससे कैसा है […]

कविता

वसीयत

वसीयत ******* लोग बोले मुझसे मरने से पहले वसीयत कर जाओ अपनी मैंने कहा सोचता हूं किसके नाम कर दूं वसीयत अपनी सोचने लगा बेटे के नाम करूं बेटी के नाम करूं या फिर कर दूं पत्नी के नाम सोचते सोचते अंतर्मन कुछ यूं बोला वसीयत करू तो करू किसकी जो मेरा है तो उसी […]

कविता

ईश्वर का संकेत

आ चले अपने अंदर की ओर बैठो कुछ क्षण मूंद आंखों को कुछ अंदर के भी दृश्य देख लो कहां तुम्हें था समय अभी तक अपने अंदर खो जाने का मिला समय है तुमको मत इसे बर्बाद करो ईश्वर ने आकर स्वयं तुमको यह सुंदर मौका उपहार दिया कुछ समझो क्या वो चाहता है करना […]

कविता

जनता कर्फ्यू

ऐसा मंजर न मैंने कभी देखा हवाओं को सिर्फ साए साए करते देखा निकला था घर से कुछ दवाई लेने आलम जो देखा सोसायटी से बाहर अाके दुकानें थी बन्द छोटी बड़ी सब डॉक्टर का दवाखाना खुला था खुली थी औषधि की दुकानें न परचूनी की दुकान खुली थी न ठेला लगा था चाय वाला […]

कविता

अपना शहर

अपने शहर के घंटाघर का मित्र द्वारा भेजा चित्र देख व्हाट्सएप पर मन दौड़ गया बीते हुए कल में याद आ गया अपना बचपन वो स्कूल के दिन और साथ के साथी बड़े हुए पढ़े वहीं फिर नौकरी की उसी शहर में बचपन की उछल कूद दोस्तों के साथ दिन भर आवारागर्दी करना वो सिगरेट […]

कविता

एकाकीपन

कितना एकाकी हो गया जीवन कुछ हो गया कुछ बना लिया जिस बिल्डिंग के तेरहवें फ्लोर के कमरे में लेटा हुआ हूं वहां से देख रहा हूं चारों तरफ मकां ही मकां कुछ दो मंजिले कुछ तीन चार मंजिले आकाश को छूने की होड़ में बनी गगन चुंबी इमारतें भी चारों तरफ इमारतें ही इमारतें […]