कविता

कुछ देखो मत, अंधे होकर बैठे रहो

वे जो कर रहे हैं करने दो न देखो, न सुनो, न बोलो, उन्हें करने दो अपनी मनमानी सिर्फ देखते जाओ तुम द्रष्टा होकर तभी वे तुम पर खुश रहते हैं, वे कुछ भी करें उन्हें करने दो तभी वे तुम पर मेहरबान रहेंगे, वे चाहते हैं तुम इसी तरह द्रष्टाभाव से चिन्तनहीन होकर तटस्थ […]

कविता

बदलाव

नहीं पहनाता कोई अब सोने की पगड़ी किसी को, वे लोग भी अब कहाँ रहे जो बनाया करते थे सोने के महीन तार, बुना करते थे तल्लीन होकर ताने-बाने यशोगान करते हुए, भर देते थे अपनी सम्पूर्ण कलाकारी, श्रद्धा और आत्मीय संवेदनाएँ पगड़ी में जो प्रतीक हुआ करती थीं आदमी के महामानव होने की । […]

राजनीति

जवाबदेह रहें दोनों ही, गण हो या तंत्र

प्रजातंत्र में समाज और जीवन के हर पहलू में गण और तंत्र दोनों ही एक-दूसरे के लिए हैं। गण को तंत्र के प्रति श्रद्धावान, वफादार और विश्वासु होना चाहिए। इसी प्रकार तंत्र को भी गण के प्रति जवाबदेह एवं संवेदशील होना चाहिए। दोनों के मध्य आपसी भरोसे और पारस्परिक सहयोग भावना जितनी अधिक प्रगाढ़ होगी उतना […]

इतिहास

साहित्यकाश में दशकों तक छाए रहे फक्कड़ शब्दशिल्पी मणि बावरा

बांसवाड़ा के साहित्यकाश में उदित होकर अपनी रचनाओं की चमक-दमक के साथ देश के साहित्य जगत में ख़ासी भूमिका निभाने वाले मणि बावरा वागड़ अँचल के उन साहित्यकारों में रहे हैं जिन्हें अग्रणी पंक्ति का सूत्रधार माना जा सकता है।                 यशस्वी साहित्यकार मणि बावरा उस शख़्सियत का नाम रहा है जिसने जीवन संघर्षों और परिवेशीय […]

कविता

आत्मघात

चतुर्दिक चकाचौंध के मोहपाश से घिरकर जो खींचे चले आए हैं पतंगों की तरह इस बाड़े के भीतर आत्मघाती आन्दोलन के प्रणेता बनकर अब महसूसने लगे हैं खुद को मकड़ी की मानिन्द, उलझते ही जा रहे हैं गलियारों की भुलभुलैया में, अपने भीतर पदीय अहंकार की हाइड्रोजन गैस भर उड़ने लगे हैं गुब्बारों की तरह […]

सामाजिक

दरिद्रता और पाप देता है दुष्टों का सम्पर्क

जनसंख्या महाविस्फोट के मौजूदा दौर में इंसानों की ढेरों प्रजातियों का अस्तित्व बढ़ता जा रहा है। कुछ नई किस्म के बुद्धिहीन, पशुबुद्धि और आसुरी वृत्ति वाले लोगों की नई प्रजातियां जन्म ले रही हैं और कई सारे ऐसे हैं जिन्हें इंसानों की किसी प्रजाति में नहीं रखा जा सकता है। इन्हीं में एक किस्म उन लोगों […]

कविता

चमचागिरी जिन्दाबाद

वे कहते हैं बन्द करो चमचागिरी पर कैसे कर पाएंगे वे ऐसा, बातें कहना व राय देना अलग बात है और असली जिन्दगी जीना दूसरी बात। उन बेचारों की तो जिन्दगी ही टिकी हुई है चमचागिरी पर, वे छोड़ दें तो काफी आबादी नहीं मर जाएगी भूखों , फिर चमचे नहीं होंगे तो जमूरों और […]

सामाजिक

याचना करें तो केवल ईश्वर से

मनुष्य का पूरा जीवन ऐषणाओं का पूरक और पर्याय रहा है जहाँ हर किसी को कुछ न कुछ कामना ताजिन्दगी बनी ही रहती है। इसके सकारात्मक और नकारात्मक, वैयक्तिक अथवा सर्वमांगलिक प्रकार हो सकते हैं लेकिन इच्छाओं और तृष्णाओं का सागर हर पल लहराता ही रहता है। कोई-कोई बिरला ही होगा जो संसार में आने के […]

कविता

चरैवेति

मंथर महाप्रवाह में तुम कब तक निःस्तब्ध लेटे रहोगे संसार सरिता की सतह पर योगी होने का भ्रम पाले, कब तक छलते रहोगे किनारे खड़ी भीड़ को जो तुम्हें ‘अलौकिक’ समझ बैठी है, तुम नहीं जानते सनातन प्रवाह के करतब, समय आने पर ये उगला देते हैं ज्वालामुखियाँ उफना देते हैं लहू का दरिया और […]

कविता

जवानी

कुछ लोग कभी नहीं होते बूढ़े मरते दम तक ये जीते हैं जवानी के भ्रम में, कई किस्में हैं इन बूढ़े ‘जवानों’ की न कलमकार बूढ़ा होता है न काले कोट वाले या सफेदपोश, न ठेकेदार, समाजसेवी, चोर-डकैत, तस्कर और अपराधी, न संत-महंत-मठाधीश और सेठ-साहूकार या धंधेबाज भ्रष्ट अफसर, जनता की जवानी छिनकर लगे रहते […]