है झूम उठे धरती अंबर , पत्ता पत्ता हरषाया है ।महके हैं सारे दिग दिगंत ,नववर्ष हमारा आया है। पतझड़ का दुखद समय बीता ,आशा के नव कोपल फूटे ।तरुओं की रिक्त पुस्तिका पर,विधिना ने रचे फूल बूटे । कोमल कलियों का आलिंगन, रसिया मधुकर को भाया है।महके हैं सारे ……………………… महुआ महकाये ऊषा को […]
Author: *डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी
गीतिका
आदमी आदमी को खाता है ।और फिर अश्क भी बहाता है। आग है सिर्फ पेट की इसके, जहां भर को मगर जलाता है। झूठ दुनिया के याद रखता है,मौत के सच को भूल जाता है। अंत में साथ में कुछ नही जाता,उम्र भर सिर्फ यह जुटाता है। जबकि सोना है हमेशा के लिए,नींद औरों की […]
गीत – मधुकर तुम वापस तो आये
तुम क्या जानो पतझड़ में हम घुट घुट कर कैसे अकुलाये ! मधुकर तुम वापस तो आये ! अनावृत्त मुझको कर डाला , ठंड भरी काली रातों ने । मेरे तन मन को पीड़ा दी , हिम बयार की कटु बातों ने । मैं तरु सब चुपचाप सह गया ,अंतस में एक सृजन छुपाये । […]
गीतिका
साँपों को मैंने दूध पिलाया ,गलत किया ।दुर्जन से भी संबंध निभाया,गलत किया । सीने पे वार करके ,मुझे मारता सही ,चुपचाप जहर तूने पिलाया, गलत किया। मैं हूँ प्रलय का गीत,मैं चुपचाप ठीक था,जाने क्यूँ तूने मुझको बजाया,गलत किया। मैं सोचता था तूने कपट छोड़ दिया है,तू कालनेमि बनके फिर आया,गलत किया। इतिहास शकुनि […]
रूढ़िवादी
यह कहानी शुरू होती है ,गंगा यमुना के मिलन के शहर प्रयागराज से , जहाँ संगम और गंगा के किनारे रूढ़िवादी परंपराओं का पोषण होता है ,और दारागंज और अल्लापुर में दस गुणे दस के कमरों में प्रगतिवाद की ओर बढती एक रूढ़िवादी दुनिया बसती है, तो सिविल लाइन के महंगे […]
गीतिका
जलते हुए सपनों का धुआँ, घोंट रहा दम । मंजिल कहाँ है ? रास्तों में खो गये हैं हम । क्या लेके आये थे यहाँ, क्या साथ जायेगा ? मस्ती में जिओ शान से,किस बात का है गम ? साँपों ने जहर आदमी से कर्ज मे लिया , हैं साँप आस्तीन के,साँपो से भी […]
गीतिका
नम आँखे हैं ,सूना मन है, क्या मैं अपना हाल सुनाऊँ ? जीने से अब ऊब गया मन,डर लगता है मर न जाऊँ। जिस दिन से चलना सीखा है, रक्तबीज हो गए रास्ते , लक्ष्य सभी ठहराव क्षणिक थे ,ठगा गया मैं किसे बताऊँ? सपनों की समिधाएँ जलती है, साँसो की आहुति लेकर, मृगतृष्णा का […]
गीतिका
बस जोड़ने मे सारा जीवन गुजर गया है । हिस्से में मेरे अब तक केवल सिफ़र गया है। हलचल है हर तरफ मैं गोधूलि की तरह हूँ, कुछ देर पहले छूकर,मुझे दोपहर गया है । थे स्वप्न काँच के सब, कब तक सम्हाल पाता? ठोकर थी वक्त की ,अब सब कुछ बिखर गया है। हर […]
गीत
पीर असहनीय हुई तब साथी गीत हुए । टूटे अनुबंध सभी ,दूर सभी मीत हुए । नयनों से मोती की झर झर बौछार हुई । यादों की लता पड़ी पीली बीमार हुई । विरहा की निष्ठुरता , सुख मेरे अतीत हुए। टूटे अनुबंध सभी…………………… टेसू के फूल मुझे ,रक्तभरे घाव लगे । प्रकृति के रूप […]
गीतिका
बस जोड़ने मे सारा जीवन गुजर गया है । हिस्से में मेरे अब तक केवल सिफ़र गया है। हलचल है हर तरफ मैं गोधूलि की तरह हूँ, कुछ देर पहले छूकर,मुझे दोपहर गया है । थे स्वप्न काँच के सब, कब तक सम्हाल पाता? ठोकर थी वक्त की ,अब सब कुछ बिखर गया है। हर […]