गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

पत्थरों से तो सर बचा आये चोट फूलों की मार से खाये सारी दुनिया को जीतकर लौटे मात परिवार से अपने खाये योग्यता काम तब नहीं आती जब भी अपनों से जंग छिड़ जाये दूसरों को सलाह खूब दिए खुद के मसलों को हल न कर पाये ख़्वाब कितने हसीन पाले थे दफ़्न हाथों से […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

जलेगा चमन तो धुआं भी उठेगा धुआं जो उठेगा तो सबको दिखेगा अकेला नहीं घर है बस्ती में मेरा मेरा घर जलेगा तो सबका जलेगा अभी आप के हाथ में है चला लें यही अस्त्र कल आप पर भी चलेगा अदावत करे लाख मुझ से ज़माना झुका है न यह सर , न आगे झुकेगा […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

काट दो तो और कल्ले फूटते हैं और भी ताज़े, हरे वे दीखते हैं खूं उतर आता है जब आंखों में यारो तब उन्हीं झरनों से शोले फूटते हैं चींटियों के संगठित दल देखकर के हाथियों के भी पसीने छूटते हैं मान लूं कैसे कि वो इंसान चुप है उसके माथे पर पड़े बल बोलते […]

समाचार

डी एम मिश्र के गजल संग्रह का विमोचन एवं परिसंवाद सम्पन्न

जन संस्कृति मंच के सहयोग से ‘रेवान्त’ पत्रिका की ओर से चर्चित जनवादी गजलकार डी एम मिश्र (सुल्तानपुर) के नवीनतम ग़ज़ल संग्रह ‘समकाल की आवाज़’ तथा ‘ग़ज़ल संचयन’ का विमोचन यूपी प्रेस क्लब, हज़रतगंज में सम्पन्न हुआ। इस मौके पर डीएम मिश्र की ग़ज़लों के साथ समकालीन ग़ज़ल विधा पर परिसंवाद के अन्तर्गत अच्छी चर्चा […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

शहर ये जले तो जले लोग चुप हैं धुआं भी उठे तो उठे लोग चुप हैं ज़रा सी नहीं फ़िक्र शायद किसी को ख़ज़ाना लुटे तो लुटे लोग चुप हैं कहां होगा फिर पंछियों का बसेरा शज़र ये कटे तो कटे लोग चुप हैं सभी को पड़ी है यहां सिर्फ़ अपनी पड़ोसी मरे तो मरे […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

जो रो नहीं सकता है वो गा भी नहीं सकता जो खो नहीं सकता है वो पा भी नहीं सकता | सीने में जिसके दिल नहीं, दिल में नहीं हो दर्द इन्सान वो शख़्स ख़ुद को बता भी नहीं सकता आंसू गिरे तो लोग राज़ जान जायेंगे अपनों का दिया ज़ख़्म दिखा भी नहीं सकता […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

मारा गया इंसाफ़ मांगने के जुर्म में इंसानियत के हक़ में बोलने के जुर्म में मेरा गुनाह ये है कि मैं बेगुनाह हूं पकड़ा गया चोरों को पकड़ने के जुर्म में पहले तो पर कतर के कर दिया लहूलुहान फिर सिल दिया ज़बान चीखने के जुर्म में पंडित ने अपशकुन बता दिया था, इसलिए हैं […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

ग़मज़दा आंखों का दो बूंद नीर कैसे बचे? ऐसे हालात में अपना ज़मीर कैसे बचे? धर्म के नाम पे तालीम दोगे बच्चों को? मुझको इस बात की चिंता कबीर कैसे बचे? एक भी कृष्ण नहीं, अनगिनत दुःशासन हैं आज की द्रौपदी का बोलो चीर कैसे बचे? हर तरफ घात लगाए हैं लुटेरे बैठे ऐसी सूरत […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

बड़े  वो लोग हैं किरदार की बातें करते सिर्फ़ मोबाइलों से प्यार की बातें करते। बड़ी तेजी से बदलती हुई इस दुनिया में अब के बच्चे कहाँ परिवार की बातें करते। कभी उठा के देख लो निजी जीवन उनका सिर्फ़़ उपदेश में सुविचार की बातें करते। इन्हीं बुज़ुर्गों से सीखा था बोलना बेटे इन्हीं को […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

मौत के बाद का किसने ज़हान देखा है कुछ कहा, कुछ सुना कोरा बयान देखा है। कोई जन्नत न मैंने कोई जहन्नुम देखा सर उठाया तो फ़क़त आसमान देखा है। जैसे पंछी उड़ा बहेलिया पड़ा पीछे उसके माथे पे चोट का निशान देखा है। उसकी आंखें जो बोलती हैं उसे सुनिए भी कैसे कहते हो […]