आज के पार्थ सारथी
पहले के पार्थ सारथी कृष्ण को लगभग ३५०० वर्षों बाद हम में से कुछ लोग अब कुछ समझ पाए हैं
Read Moreपहले के पार्थ सारथी कृष्ण को लगभग ३५०० वर्षों बाद हम में से कुछ लोग अब कुछ समझ पाए हैं
Read Moreपरमात्मा हमारे अपने हैं। वस्तुत: वे हमारे हैं और हम भी उनके हैं ! हम उनसे पत्नी/पति/मित्र से भी ज्यादा
Read Moreप्रष्फुटित चित्त है हुआ जब से, महत महका किया है अन्तस से; अहम् विकसित हुआ किया चुप से, शिशु सृष्टि
Read Moreअचानक उष्ण धार जब छोड़े, ध्यान में मुझको वे रहे जोड़े; गीले आवरण देख नेत्र मुड़े, इससे उद्विग्न वे हुए
Read Moreमोहत रहत मो कूँ चहत, मुड़ि मुड़ि तकत चित रिझावत; होली पे कान्हा खिजावत, वाँशी बजा ढ़िंग बुलावत ! मन
Read Moreचहकित चकित चेतन चलत, चैतन्य की चितवन चुरा; जग चमक पर हो कर फ़िदा, उन्मना हो हर्षित घना ! शिशु
Read Moreकबहू उझकि कबहू उलटि, ग्रीवा घुमा जग कूँ निरखि; रोकर विहँसि तुतला कभी, जिह्वा कछुक बोलन चही ! पहचानना आया
Read Moreवह गोद मेरी लेट कर, ताके सकल सृष्टि गया; मेरी कला-कृति तक गया, झाँके प्रकृति की कृति गया ! देखा
Read Moreवह समझता मुझको रहा, मैं झाँकता उसको रहा; वह नहीं कुछ है कह रहा, मैं बोलता उससे रहा ! अद्भुत
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