हम हिंदू, हिन्दुस्तान हमारा
‘जपो निरंतर एक जबान, हिंदी, हिंदू,हिन्दुस्तान’ प्रताप नारायण मिश्र जी की ये पंक्ति आज भी राष्ट्रवादियों का आह्वान करती है। राष्ट्रवाद उत्थान,राष्ट्रीय
Read More‘जपो निरंतर एक जबान, हिंदी, हिंदू,हिन्दुस्तान’ प्रताप नारायण मिश्र जी की ये पंक्ति आज भी राष्ट्रवादियों का आह्वान करती है। राष्ट्रवाद उत्थान,राष्ट्रीय
Read Moreनींद में करवटें बदली खूब स्वप्न में उत्तेजना ये कैसी…! चित्र-विचित्र, अजीब उलझन रोम-रोम में अजीब अकड़न। अकस्मात! एक बेतरतीब
Read More️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️शब्दों की अदालत में प्रजातंत्र गिरफ्तार है मुजरिम की तरह वादों की हथकड़ियाँ टूटती नहीं भाषणवीरों की जीभ घिसती नहीं
Read Moreजिस ओर उठाये मुँह चल दूँगा, कदम फिर लौट के न आयेंगे। फासलें मिट जायेंगे साँसों के, हम खुद से
Read Moreघिर आती जीवन में पीड़ा मन में मंद चिंता का घेरा पथ विचार उलझ जाता सूझ न पड़ती कोई राह
Read Moreमैं क्या हूँ!कुछ नहीं! बस! एक मरीज हूँ जिसके साथ भावना नहीं डॉक्टर के लिए पैसा हूँ। समाज का अपराधी
Read Moreबिखर रहे माला के मोती, जीवन से लाली छिटक रही। विहंग कलरव शिशु बाल कल्पना, अब कठोर धरातल पटक रही।
Read Moreझूठा हूँ मैं! गीत झूठ के गाता हूँ ? सुलग रहे जो दो कण संशय, मेरे अन्तरतम की पीड़ा से।
Read Moreक्यों! आज व्यथा भारी है तुम पर क्या रावण छल के अवशेष दिखे फिर! तू बोल रूद्राक्षी!तू
Read Moreप्रणाम कुलशीर्ष पितामह! आशीष धर्मराज! अनुकंपा है केशव की तुम पर। कहो! याचक बनकर अभीष्ट वर मांगने…. या संशय के
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