गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

थोड़ा और सियाना कर दे। माज़ी से अन्जाना कर दे। हरदम पीना भाता उनमें, आँखों को पैमाना कर दे। उल्फ़त के जो दुश्मन जग में, उन पर अब जुर्माना कर दे। और नहीं प्रतिद्वन्दी कोई, दाम अभी मनमाना कर दे। कहते इश्क़ उसे ही सच्चा, जो जग से बेगाना कर दे। — हमीद कानपुरी

मुक्तक/दोहा

हमीद के दोहे

फागुन का यूँ आगमन, सारे जग को खास। होली आकर बाँटती , दुनिया में उल्लास। हिम्मत को अपनी मियाँ, रखना रोज़ जवान। कम होने देना नहीं, हरगिज़ अपनी शान। राह दिखाता नित नई, दुनिया को विज्ञान। इसके दम से हो रहे, हर दिन अनुसंधान। लज्जित करने के लिए, रहिये नहीं अधीर। होना तुमको गर बड़ा, […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

छोड़ चुकी है चार दिवारी। आगे बढ़ती अब की नारी। लगती है जब ज़र्ब करारी। दुश्मन माने तब ही हारी। भारत वर्ष सभी हैं कहते, ये धरती है सब से न्यारी। अपनीकरनी का होश नहीं, देती फिरती सब को गारी। तेवर उसके ढीले ढाले, जबसे आयी विपदा भारी। — हमीद कानपुरी

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

मशक्कत से रोज़ी कमाना सिखायें। सही राह बच्चों को हरदम बतायें। चलो आज फिर से नया घर बनायें। नये जोश से अपना आंगन सजायें। तनिक मत किसीको कहींभी दबायें। किसी को नहीं बे सबब यूँ सतायें। शराफ़त के परचम को ऊँचा उठायें। ग़रीबों यतीमों पे शफ़क़त लुटायें। नये फूल गमलों में आओ खिलायें। नये घर […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

एक  आना   उबाल   ब़ाक़ी  है। उससे करना  सवाल  बाकी है। बद ज़बां बात कह चुकाअपनी, सिर्फ़  होना   वबाल  बाकी  है। है  तजुर्बा  बहुत  बड़ा  लेकिन, सर  पे उसके न बाल बाकी है। ज़िन्दगी का चले तो है पहिया, उस पे  कोई  न हाल बाकी है। ध्यान दे सुन  हमीद की  बातें, कुछ अभी बे मिसाल […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

उसके आने का शुरू जब सिलसिला हो जाएगा। नफ़रतों का ज़ख्म यारो फिर हरा हो जाएगा। मौत मस्ती से सूकूं से कट रही थी ज़िन्दगी, किसने जाना था सनम भी बेवफा हो जाएगा। नफरतें यूँ ही अगर इस देश में पलती रहीं, मुल्क सारा एक दिन ये ग़मक़दा हो जाएगा। प्यार उल्फ़त के यहाँ दरिया […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

अस्ल   होता  वही   है  बड़ा  आदमी। सबकी खातिर करे जो दुआ आदमी। तंग  करता   फिरे    दायरा   आदमी। हर समय  सोचता  फायदा  आदमी। दूसरों   की   बुराई   करे   हर  जगह, यूँ भी बनता कहीं  है भला  आदमी। लोक सेवा जो करता रहे  हर समय, याद करता उसी  को सदा  आदमी। बात बे बात कर के खड़ा मसअला, […]

राजनीति

भाषा संयम खोती राजनीति

इस सत्य को कोई भी नकार नहीं सकता है कि जिस समाज की भाषा में सभ्यता होती है।उस समाज में भव्यता और दिव्यता होती है।किसी चुनाव से पहले धुवाँधार प्रचार के ज़रिये मतदाता तक पहुँचने के चक्कर में आज राजनीति अपना भाषा संयम खोती चली था रही है। एक दूसरे के संगठन और नेताओं पर […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

ख़ुदा  के नाम  का चर्चा   बहुत  है। यक़ीनन  राज़  ये  गहरा   बहुत है। समन्दर की  नहीं चाहत  हमें कुछ, हमारे   वास्ते    क़तरा    बहुत  है। नहीं चाहत   किसी  भी  दूसरे की, तुम्हारे साथ  का  सपना  बहुत है। दिखाओमत हमें जन्नत कासपना, हमारे  वास्ते   दुनिया    बहुत  है। नहीं सीरत पता चलती किसी की, जहां  के  सामने  चेहरा  […]