रोज़ मेरे सपनों में आया करता है, नींदों में वो घर बनाया करता है। ये कैसी फितरत है उसकी पूछो ना, हंसते- हंसते मुझे रुलाया करता है। इन वीरान, अंधेरी काली रातों में, आस का दीपक...
कभी अपने लिए कुछ शौक पाल जीना था, मौत का ज़िंदगी से डर निकाल जीना था। क्यूं अपने मन को मार इतने दिनों जीता रहा, क्या तुझको थी ये ख़बर कितने साल जीना था। बाद तेरे...
दिन करता है रात की चुगली, इक, दूजे के साथ की चुगली। छिपते नहीं हैं, लाख छुपाएं, शक्ल करे हालात की चुगली। कोई भी संतुष्ट कहां है, जीत गए तो मात की चुगली। सावन ...
तू मिले, तेरा घर मिले मुझको, ज़िंदगी फिर अगर मिले मुझको। पत्थरों को बना दूं, इंसा सा, काश ऐसा हुनर मिले मुझको। छांव मिलती रही सदा जिनकी, अब नहीं वो शज़र मिले मुझको। मेरे लहजे ...
बीते दिन को याद करता हूं सिहर जाता हूं मैं, कुछ कदम चलता हूं जाने क्यूं ठहर जाता हूं मैं। हंसके पीता हूं ज़हर जो ज़िंदगी देती रही, रोज़ जीता हूं यहां मैं, रोज़ मर जाता...
इश्क़ में और आशिकी में हम, गुम हैं अपनी ही शायरी में हम। एक तारीख जैसे लिख्खें हैं, खुद हमारी ही डायरी में हम। धूप में जलते ग़म नहीं होता, क्यूं जले रोज़ चांदनी में हम।...
पार दरिया के मेरा है घर मगर सबसे अलग, हर घड़ी तूफान का रहता है डर सबसे अलग। झूठ, मक्कारी, दगा फितरत में मेरी है नहीं, बोलता हूं सच ये मेरा है हुनर सबसे अलग। लाग ...
कौन है चोर कैसे हम जाने, कौन सिरमौर कैसे हम जाने। झूठे अभिमान के पीछे उसके, किसका है ज़ोर कैसे हम जाने। ऐसे रिश्तें हैं आजकल जिनका, ओर न छोर कैसे हम जाने। फर्क दोनों में ...
जब इश्क़ के असर में रहा। बहुत सबकी नज़र में रहा, यार मेरे पत्थर, पर उनके, संग शीशे के घर में रहा। सांस चली जिस पल तक, केवल मौत के डर में रहा। रब का साथ...
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