कविता

तुलसी आज

क्यों में तुलसी तेरे आंगन की बनूं मेरी अपनी महत्ता मैं ही तो जानूं संग तेरे रहूंगी जीवन भर के लिए प्यार भरी संगिनी बन कर तेरे लिए अपनों को बाहर नहीं रखा करतें है उन्हे दिल में रख पास पास बैठते हैं बैठ पास गुफ्तुगु कर कामना जानते है इश्क की कदर कर प्यार […]

कविता

फागुन आयो रे

आयो फागुन संग वसंत के भर के लायो जीवन में उमंग प्यार रंग से भर लो पिचकारी महका ने जीवन बगिया सारी पिया संग नाचूं में भर पिचकारी लेके हाथ में भांग की प्याला लगे हरेक रंग हमे क्यों निराला होली के में दहन की होलिका प्रहलाद संग रंग खेले खेलैया कान्हा संग राधा खेले […]

सामाजिक

आधुनिकता वरदान या अभिशाप

प्रगति सब ही क्षेत्र में आवकारदाय है।प्रहलें हम पैदल या बैल गाड़ियों,घोड़ा गाड़ियों आदि में प्रवास करते थे।धीरे धीरे बसें ट्रेन आई फिर उनका आधुनिकतम रूप आया।अब तो हवाई जहाज़ के साथ साथ बुलेट ट्रेन आदि भी उपयोग में प्रवास करना उपलब्ध है।इतनी प्रगति करने के लिए हम ने बहुत कुछ खोया है। पहले हम […]

सामाजिक

बच्चो की बदलती मानसिकता

ये मेरा अपना अभिप्राय है जो इतने साल गृहस्थी चलाने से और शिक्षण कार्य के दौरान अनुभव किसी उसीसे बना है।याद है जब हम छोटे थे तो गिने चुने कपडें और खिलौने ही नहीं कोई भी चीज जरूरत से ज्यादा नहीं मिला करती थी।चाहे उस वक्त सब के  आर्थिक हालत ठीक नहीं थे ऐसा नहीं […]

सामाजिक

मानवता

कईं रसों से हमारा ह्रदय समृद्ध है।सब रस बहुत ही आवकारदायक है।जैसे प्रेम,जिससे मानव सहृदय बनता है, करूणा की भावना से मन भर जाता है। श्रृंगार रस तो जिंदगी की मिठास है जिससे जीवन मधुबन सा महक उठता है।इतने उत्तम रसों के मध्य क्रोध और स्वार्थ की भावनाएं जीवन की महत्ता के दायरों को सीमित […]

सामाजिक

सामाजिक सरोकार

जीव मात्र सामाजिक प्राणी हैं,उन्हे साथ चाहिए ये बात पक्की हैं।उसमे चाहें कौए हो या चिड़िया सब अपनों के संग दिन में एक बार उड़ान भरते ही हैं,चिड़ियां सुबह के समय तो कौए शाम के समय आते हैं, बंदर झुंड में,चलती हैं गाएं भैंसें भी झुंड में।बकरी और भेड़ें भी तो एक साथ चलती हैं […]

सामाजिक

ये भी देखो समझो

जहां सुमति होती हैं वहां संपत्ति भी होती है,परिवार में एक विचार होने से एक सा ही व्यवहार होता हैं।एक सा व्यवहार होने से परिवार  में एकरूपता आती हैं।इससे परिवार की उन्नति होती हैं। सुमति होने से भिन्न विचार होने पर भी सभ्य के बीच सुमेल रहता हैं।और कुमति होने से सभ्यों के बीच एक […]

सामाजिक

धैर्य

बचपन से सुनते आएं हैं धैर्य से काम लो तो फल जरूर मिलेंगे।आजकल के ज़माने में धैर्य खत्म होता जा रहा हैं।कुछ तो जमाने में हर जगह ’स्पीड’ –झड़प कह सकते हैं उसकी अतिशयोक्ति आ गई है।देखें तो वाहन,पहले के जमाने में पैदल या तांगा वे बैलगाड़ी में यात्रा करते थे।क्या करते थे उस समय […]

कविता

मुस्कुराते चेहरे

हो खत्म दुनिया से दुःख की लहरे तब दिखेंगे हम मुस्कुराते हुए चेहरे जुल्म ओ सितम का दौर खत्म हो प्यार और अमन के सपनें रचे हो लिखे सब प्रेम महोबबत की कहानी न नफरत की बातें किसी की जुबानी जब लिखेंगे हम सब प्यार के ही तराने दुनिया में करते नफरत कीसी बहाने बताओं […]

भाषा-साहित्य

हिन्दी हमारी कितनी?

हिंदी दिवस की शुभकामनाएं के अनगिनत msg पाएं किंतु कैसे छुड़वा पाएंगे अंग्रजी के पाश से? Msg को क्या बोलेंगे? समाचार? नहीं ये गलत प्रयोग होगा,संदेश? ये आप ही सोचे हिंदी को हिंदी बनाएं रखना कितना मुश्किल हैं?कई क्षेत्र ऐसे खास कर डॉक्टरी ,विज्ञान आदि के को परिभाषिक शब्द या वाक्यांश हैं जो सिर्फ अंग्रजी […]