लघुकथा

लघुकथा- सिंदूर

मीना ने मांग में सिंदूर भरा और अपनी बेटी को जल्दी से तैयार करने में जुट गई! मम्मी की मांग में सिंदूर देख अरूषी अनायास ही बोल पड़ी …मम्मी हम तो पापा से मिलने जा रहे हैं और वहाँ नयी मम्मी भी होगी! तो.. मीना ने उत्सुकता से पूछा?? पर, मम्मी उनकी मांग में भी […]

गीत/नवगीत

मोहब्बत

मैंने उन लम्हों से मोहब्बत की है… मिले थे जब हम तो क्या कहें, तुम्हारी अदाओं का असर! सूरत दिखाकर यूँ छुप जाना , तुमने तो बस शरारत की है! पर मैंने उन लम्हों से मोहब्बत की है! तुम्हारे बाद याद करके तुम्हें, फिर अकेले में मुस्कुराना! तुम्हारा कल आने का वादा, पर फिर लौट […]

विविध

शे’र..

मैं चाहता रहा हरदम हालात मेरे दुरस्त हों, ज़िंदगी इसी जुस्तजू में देखो हाथों से निकल गई! तुम्हारी बातों का जिक्र भी दिल को अजीब सा सुकून देता है, तुम मिल जाओ अगर सदा के लिए तो हाले दिल ब्यां कैसे करेंगे!

गीत/नवगीत

पुरानी यादों पर कोहरा जम गया!

पुरानी यादों पर कोहरा जम गया… बीत गए क्यों पल में वो पुराने किस्से, हुआ करते थे कभी ज़िन्दगी के हिस्से! यादों का मौसम भी मानो अब थम गया , क्यों उन पुरानी यादों पर कोहरा जम गया!! सोचा था समेट कर सब हसीन पलों को यूँ, इक यादों का कारवां सा बनाएंगे फिर हम! […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

क़ाफिया-आना रदीफ़- कहीं मिला नहीं जहाँ में अभी ठिकाना कहीं! तुम हमें न यूं बार -बार आज़माना कहीं! मेरे मुकद्दर में नहीं लिखा तेरे सिवा कोई, ये बात फुर्सत में खुद को भी समझाना कहीं! ये जो गैरों से मिलकर हमें देखते हो छुप कर, आता है सब समझ हमको न बहलाना कहीं! हमसे बिछड़ने […]

कविता

दीवारें भी सुनती हैं…

दीवारें भी सुनती हैं शायद जो भी बात घटती है घर में, कभी जब छोटी सी बात कलह बन जाती है घर में! महसूस करती हैं घर की नींव की तरह जिस पर टिकता आशियाना, होगा बंटवारा या मिलजुल कर रहेंगे और गूंजेगा तराना! सहम जाती हैं और देती हैं धूप- छाँव का अहसास भी, […]

गीत/नवगीत

आयी चुनाव की बेला…(व्यंग्य रचना)

आओ देखो तुम ये राजनीति का खेला, क्योंकि दोस्तों अब आयी चुनाव की बेला। इक दूजे पे तीर चले हैं यूं भारी भरकम, मुफ़्त की सेल लगी है कहीं लगा है मेला, क्योंकि दोस्तों अब आयी चुनाव की बेला। देशहित के कानून हों चाहे कोई सुझाव, भीड़ पीछे है कहीं रह गया हंसा अकेला। क्योंकि […]

गीत/नवगीत

तरकश..

तरकश.. तरकश में वो तीर कहां अब, जो दुश्मन को ख़ामोश करें। आओ हम तुम मिलकर अब कुछ तो प्रयास रोज़ करें। दुश्मन है वो बहुत पुराना,रोज़ जाल नया वो बिछाएगा , अजगर का फन कुचलने को आओ आज ही उदघोष करें। तरकश में अब ….. प्यार समझोते की भाषा उसको समझ न फिर आनी […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल !

बेरुखी ऐसी भी न हो चिलमन भी हो और तन्हाई भी मिले, हम फूलों की चाह करें और चमन में बस यूं कांटे ही मिले। तुम ही कह दो कैसे न शिक़वा हम करें तुम्हारी बेवफाई का, वादा भी तोड़ो और इल्ज़ाम जुदाई का आखिर हमें ही मिले। आईने को देख कर गुरूर इतना क्यों […]

गीतिका/ग़ज़ल

रुख़सत।

जो हो गए यूं रुख़सत उनकी कमी बाकी है, बदल गया थोड़ा आसमां पर ज़मीं बाकी है। उनका यूं वक़्त से पहले ऐसे चले जाना भी, होंठों पे है मुस्कान आंखों में नमी बाकी है। मुकद्दर से मिलते हैं रिश्ते कुछ खास कहीं, होते हैं संग अपने तो यादों की गुदगुदी बाकी है। वक़्त से […]