लड़ रहे हैं सभी अपने अस्तित्व की लड़ाई, जिसे प्रकृति ने बनाया, विभक्त किया सभी को समभाव से साधन सभी, अपने अपने अस्तित्व को अक्षुण बनाये रखने हेतु, पर हम तो लोभी लोभ में पगे हुए, रहे निरन्तर प्रयत्नशील बनने हेतु सर्वशक्तिमान, दूसरों के अस्तित्व को मिटाते- मिटाते, कब करने लगे वार, अपने ही अस्तित्व […]
Author: कविता सिंह
#मन_की_गाँठ# (कोरोना इफेक्ट)
#मन_की_गाँठ# (कोरोना इफेक्ट) साठ साल की सोमवती जी बेचैनी से करवट बदल रही थीं, कभी उठती बाथरूम जातीं कभी ग्लास में पानी उड़ेलतीं। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि आज की खबर से वो इतनी बेचैन क्यों थीं। बार-बार खिड़की के पर्दे हटाकर देखतीं, सुबह हुई या नहीं। कोई तो दुःख था जो उन्हें […]
अपने ही हाथों छले जा रहे हैं।
अपने ही हाथों छले जा रहे हैं। जाने कहाँ हम चले जा रहे हैं।। टूटी सदा ख्वाहिशें ही हमारी, आँखों में सपने पले जा रहे हैं। अब तो नहीं रंजोगम कुछ हमें है, दिन भी उम्र के ढले जा रहे हैं। चाहेंगे हमको उसी रंग में पाना, मुश्किल है अब हम गले जा रहे हैं।
क्या है तेरे मेरे दरमियां?
क्या है तेरे मेरे दरमियां? कुछ तो है ऐसा तेरे मेरे दरमियां, जो परिभाषित नहीं ना ही हो पाएगा कभी। पहेली ही तो बनते जा रहे, अपने खुद के ही एहसास, जिसे खो नहीं सकते कभी, उसे खोने का भय, कितना भहायव है जो निचोड़कर रख देता है खुद के ही वजूद को… एक अजीब […]
परिपूर्णता
परिपूर्णता हां! हो तुम हृदय में , जैसे मृग के कुंडल में स्थित कस्तूरी, आभामंडल सा व्याप्त है तुम्हारे अस्तित्व का गंध, जो जगाए रखता है निरंतर एक प्यास मृगतृष्णा सी, हां मृगतृष्णा सी -…. एक अभिशप्त तृष्णा जो जागृत रखती है अपूर्णता के एहसास को मृत्युपर्यंत ….. हां ये अपूर्णता ही तो परिपूर्ण करती […]
सर्मपण
आओ ना एक बार, भींच लो मुझे उठ रही एक कसक अबूझ – सी रोम – रोम प्रतीक्षारत आकर मुक्त करो ना अपनी नेह से। आओ ना एक बार, ढ़क लो मुझे, जैसे ढ़कता है आसमां अपनी ही धरा को बना दो ना एक नया क्षीतिज । आओ ना एक बार, सांसो की लय से […]
उलझनें कम नहीं जिंदगी की
उलझनें कम नहीं जिंदगी की बस बहुत हुआ अब इसे घटाओ ना, थक जाएं जो कभी हारकर तुम आकर गले लगाओ ना, एक रूह, दो जिस्म में जिंदा रहे इस कदर धड़कनों में समाओ ना, मांग लो जान हमसे खुशी है हमें लगकर गले से मुझमें समाओ ना, छोड़ दें मुस्कुराना एकबार कहो, आजमाना हो […]
चले चलना चले चलना
चले चलना चले चलना कभी कमजोर मत पड़ना बिछे हों राह में कांटे उन्हें तुम रौंद के चलना। चले चलना चले चलना कभी कमजोर मत पड़ना। रूठे जो कभी अपने टूटे जो कभी सपने अपनो को मना लेना नए सपने सजा लेना चले चलना चले चलना कभी कमजोर मत पड़ना गिरोगे तुम कभी खुद से […]
“आत्म निर्णय”
“आत्म निर्णय” जिंदगी के धूप-छांव में गिरते-पड़ते उठते-सम्भलते बढ़ते रहे रुके नहीं क्योंकि जो भी हो जिंदगी खूबसूरत है हाँ! वक़्त के साथ सोच बदले विचार बदले पर नहीं बदली तो सबके लिए सोचने, मन की बात बोलने की जन्मजात फितरत, बदलना ही होगा अब सीखना ही होगा दफन करना मन के कोने में बनाकर […]
आसान नहीं
आसान नहीं खुद से खुद की लड़ाई मानसिक रूप से तोड़ता हर पल एक जद्दोजहद दिन दोपहर रात। जूझना खुद से कभी हारना तो कभी जीतना कभी हँसना तो कभी रोना पहुँचना कभी विछिप्तता के कगार तक। सच! आसान नहीं होता खुद को हराना खुद के हाथों और तब तो बिल्कुल भी नहीं जब हो […]