गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

सिमटता है कभी ये फैलता है हमारे बीच ऐसा फ़ासला है नया इक मोड़ लेता जब समझते सुलझने को पुराना मामला है कहा जब इश्क़ मुश्किल में सुना ये तुम्हीं जानो तुम्हारा माजरा है बढ़े जाते दिमाग़ों के इलाक़े घटा जाता दिलों का दायरा है बचेंगे या नहीं लेकिन रचेंगे हमें क्या ख़ौफ़ तानाशाह का […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

मधुर चाँदनी रात लिक्खी नहीं है हमारी मुलाक़ात लिक्खी नहीं है सुयश ज़िंदगी क्यों नहीं कर्मफल में करो मत सवालात लिक्खी नहीं है तुझे ख़ुश्क सहरा फ़क़त चंद बूँदें ! घटाटोप बरसात लिक्खी नहीं है यहाँ प्यार ही बारहा हारता है यहाँ ज़ुल्म को मात लिक्खी नहीं है यहाँ दर्ज हमलावरी ही हमारी तुम्हारी ख़ुराफ़ात […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल     

मैं तमाशा देखने जाऊँ कि मछली मारने रख दिया है सामने प्रस्ताव दो-दो यार ने देर तक ये प्यार से अवलोकने का फल रहा लाल मुझको कर दिया है गुलमुहर की डार ने एक मैं हूँ एक तुम हो और कोई भी नहीं ख़त्म दुनियादारियाँ कर दीं तुम्हारे प्यार ने जीत मुझको बाँध लेती जीत […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल     

अब क्या बखान कौन हमारा नहीं रहा वीरान आसमान सितारा नहीं रहा जब नीर का भराव लिए ही नदी नहीं सरसब्ज़ दूर-दूर किनारा नहीं रहा सम्पूर्णत: समेट रखे आँख में उसे जो आज एक अंश नज़ारा नहीं रहा वो प्यार है अनन्य समाया अनंत में उससे विमुख विचार गवारा नहीं रहा ऐसा हुआ कि रूह […]