मुक्तक
आसमां की चाहतें लेकर चला था, चाँद मुट्ठी में होगा सोचकर चला था। क्या मिला परवाह नहीं की मैंने कभी,
Read Moreछोड़कर गाँव के घर, दौड़ते थे शहर को, हरे भरे खेतों को तज, दौड़ते थे शहर को। न कहीं चौपाल
Read Moreमुजफ्फरनगर संस्कार भारती–मुजफ्फरनगर के द्वारा ‘‘आराधना’’ कार्यक्रम आयोजित किया गया। संस्कार भारती साहित्य एवं कला को समर्पित राष्ट्रीय स्वयं सेवक
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