फुसफुसाहट भी दबे पाँवों चलती हुई पूरे गाँव का चक्कर लगा आई थी और अब घर में ही बने दो खेमों में घुसकर अपने यौवन को पा मुखरित स्वर बन चुकी थी। कुछ पढ़े लिखे लोग थे जो सुप्यार की बात का मजबूती से समर्थन कर रहे थे और दूसरे वे लोग थे जिन्होंने हमेशा […]
Author: कुसुम पारीक
परजीवी
तेज गति से बहता हुआ उज्ज्वल झरना सा था वह शुरुआती दौर में , रास्ते में जो कुछ आता गया ..सब उसकी धारा में मिलता गया और अंत में एक बहती नाली का हिस्सा बन गया । नाली भी साफ पानी की नहीं ,गन्दे पानी की गन्दी नाली जहाँ ऐसे-ऐसे कीड़े भी थे जो वहीं पैदा […]
गूँज
जब से मेरी जिठानी की मृत्यु हुई है ,सास ने पीछे वाले बाड़े में जहां बकरियाँ बंधी रहती हैं, वहां की सफाई का ज़िम्मा मुझे दे दिया, लेकिन मैं जब भी उधर जाती ,तब दो घूरती हुई आँखे मुझे ऐसे चुभती हुई महसूस होती ,” जैसे कि मेरे जिस्म को अंदर तक चीर कर निकल […]
अहंकार
तुम मेरा एक मजबूत सहारा थे जिसके आवरण तले मैं खुद को बहुत सुरक्षित महसूस करती थी। शायद वह एक ऐसा लौह आवरण था जिसे भेदना अच्छे-अच्छे कुशल लोगों के वश में भी नहीं था। वह मेरी अलग दुनिया थी जिसमें केवल मेरे विचार,मेरे कायदे-कानून और केवल मेरी सोच बसते थे। इस खाँचे में जो कोई फिट नहीं […]
आओ, एक पल रुक जाएं
घी की सौंधी महक नथुनों को छूती हुई किसी अलौकिन सुख का भान करवा रही थी। विपिन को अहसास ही नहीं हुआ कि कब चम्मच को छोड़, उँगलियाँ खिचडी में तैरने लगी थी। खाने से बनती लार उसे ऐसे स्वाद से रूबरू करवा रही थी जिसे भूले उसे अरसा हो गया था। बड़े आलीशान पाँच कमरों वाले […]
कैक्ट्स
आज चार दिन बाद अस्पताल से मुझे छुट्टी मिली थी ,कमजोर हो चुके शरीर को लकड़ी के सहारे धीरे -धीरे चलते हुए अपने घर में प्रवेश किया व आराम करने के लिए तकिए पर सिर रखा ही था कि पड़ोस की सीढ़ियों से उतरने के कई पदचाप धड़ धड़ करते हुए सुनाई दिए । एक तो […]
मन की छुअन
आज भी तुमने मेरी जेब चेक किए बिना ही पेंट धो दी जिसमें दो मूवी टिकट थीं। ऑफिस की परेशानियों को सिर हिलाकर झाड़ते हुए जैसे ही मैं घर मे घुसा तुम पहले से ही तैयार बेटे का रिपोर्ट कार्ड दिखाकर शिकायतों का पुलिंदा लेकर बैठ गई । पिछले शनिवार को भी मैं कितने अरमानों से […]
पदचिन्ह
पिछले महीने ही मेरा ट्रांसफर हुआ तब से मेरे पांव जमीन पर ही नहीं पड़ रहे थे । मैं बार बार सुधा के सामने खुशी जाहिर करते हुए कह रहा था ,”अच्छा है!अब हम लोग भैया से मिल पाएंगे ,देखना वे हमें देखकर कितने खुश होते हैं !” थोड़े दिनों बाद जब हम लोग नए घर […]
समर्पण
कितनी शांत होकर सो रही है सुरभि, आज उठने का नाम भी नही ले रही ,जितना झंझोड़ता हूँ उतनी ही शांत दिखती है । जब कभी भी हमारी बहस होती और मैं रूठ जाया करता था ,तब कहती थी मुझसे ,”अब रूठा न करो ,मुझसे बर्दाश्त नहीं होता, बुढ़ापा आ रहा है ;यदि कभी मैं […]
प्रेम, परवाह और समर्पण
पिछले दिनों सुधा से फोन पर बात हो रही थी,शिकायत कर रही थी कि उसके पति उसकी बिल्कुल भी परवाह नही करते, कितना काम करती हूं, न कोई अहसान न कोई परवाह। तंग आ गई मैं इस लॉक डाउन में काम करते करते। उधर सौरभ की शिकायत थी कि जब कभी मैं कहता हूं इसको […]