मिली दौलत ,मिली शोहरत,मिला है मान उसको क्यों मौका जानकर अपनी जो बात बदल जाता है . किसी का दर्द पाने की तमन्ना जब कभी उपजे जीने का नजरिया फिर उसका बदल जाता है .. चेहरे की हकीकत को समझ जाओ तो अच्छा है तन्हाई के आलम में ये अक्सर बदल जाता है … किसको […]
Author: मदन मोहन सक्सेना
ग़ज़ल
दूर रह कर हमेशा हुए फासले ,चाहें रिश्तें कितने क़रीबी क्यों ना हों कर लिए बहुत काम लेन देन के, विन मतलब कभी तो जाया करो पद पैसे की इच्छा बुरी तो नहीं मार डालो जमीर कहाँ ये सही जैसा देखेंगे बच्चे वही सीखेंगें ,पैर अपने माँ बाप के भी दबाया करो काला कौआ भी […]
ग़ज़ल
जब अपने चेहरे से नकाब हम हटाने लगतें हैं अपने चेहरे को देखकर डर जाने लगते हैं बह हर बात को मेरी दबाने लगते हैं जब हकीकत हम उनको समझाने लगते हैं जिस गलती पर हमको बह समझाने लगते है. बही गलती को फिर बह दोहराने लगते हैं आज दर्द खिंच कर मेरे पास आने […]
ग़ज़ल
किसको अपना दर्द बतायें कौन सुनेगा अपनी बात सुनने बाले ब्याकुल हैं अब अपना राग सुनाने को हिम्मत साथ नहीं देती है खुद के अंदर झाँक सके सबने खूब बहाने सोचे मंदिर मस्जिद जाने को कैसी रीति बनायी मौला चादर पे चादर चढ़ती है द्वार तुम्हारे खड़ा है बंदा , नंगा बदन जड़ाने को दूध […]
ग़ज़ल
पाने को आतुर रहतें हैं खोने को तैयार नहीं है जिम्मेदारी ने मुहँ मोड़ा ,सुबिधाओं की जीत हो रही साझा करने को ना मिलता , अपने गम में ग़मगीन हैं स्वार्थ दिखा जिसमें भी यारों उससे केवल प्रीत हो रही कहने का मतलब होता था ,अब ये बात पुरानी है जैसा देखा बैसी बातें .जग […]
ग़ज़ल
प्यार की हर बात से महरूम हो गए आज हम दर्द की खुशबु भी देखो आ रही है फूल से दर्द का तोहफा मिला हमको दोस्ती के नाम पर दोस्तों के बीच में हम जी रहे थे भूल से बँट गयी सारी जमी फिर बँट गया ये आसमान अब खुदा बँटने लगा है इस तरह […]
ग़ज़ल
बीती उम्र कुछ इस तरह कि खुद से हम न मिल सके जिंदगी का ये सफ़र क्यों इस कदर अंजान है प्यासा पथिक और पास में बहता समुन्द्र देखकर जिंदगी क्या है मदन , कुछ कुछ हुयी पहचान है कल तलक लगता था हमको शहर ये जाना हुआ इक शख्श अब दीखता नहीं तो शहर […]
ग़ज़ल
मैं रोता भला था, हँसाया मुझे क्यों शरारत है किसकी, ये किसकी दुआ है मुझे यार नफ़रत से डर ना लगा है प्यार की चोट से घायल दिल ये हुआ है वक्त की मार सबको सिखाती सबक़ है ज़िन्दगी चंद सांसों की लगती जुआँ है भरोसे की बुनियाद कैसी ये जर्जर जिधर देखिएगा धुँआ ही […]
ग़ज़ल
मेरे जिस टुकड़े को दो पल की दूरी बहुत सताती थी जीवन के चौथेपन में अब ,बह सात समन्दर पार हुआ रिश्तें नातें -प्यार की बातें , इनकी परबाह कौन करें सब कुछ पैसा ले डूबा ,अब जाने क्या ब्यबहार हुआ .. दिल में दर्द नहीं उठता है भूख गरीबी की बातों से धर्म देखिये […]
ग़ज़ल
दुनिया बालों की हम पर जब से इनायत हो गयी उस रोज से अपनी जख्म खाने की आदत हो गयी शोहरत की बुलंदी में ,न खुद से हम हुए वाकिफ़ गुमनामी में अपनेपन की हिफाज़त हो गयी मर्ज ऐ इश्क को सबने ,गुनाह जाना ज़माने में अपनी नज़रों में मुहब्बत क्यों इबादत हो गयी देकर […]