कंक्रीटों के जंगल में नहीं लगता है मन अपना जमीं भी हो गगन भी हो ऐसा घर बनातें हैं ना ही रोशनी आये ,ना खुशबु ही बिखर पाये हालत देखकर घर की पक्षी भी लजातें हैं दीबारें ही दीवारें नजर आये घरों में क्यों पड़ोसी से मिले नजरें तो कैसे मुहँ बनाते हैं मिलने का […]
Author: मदन मोहन सक्सेना
ग़ज़ल
अपनी जिंदगी गुजारी है ख्बाबों के ही सायें में ख्बाबों में तो अरमानों के जाने कितने मेले हैं भुला पायेंगें कैसे हम ,जिनके प्यार के खातिर सूरज चाँद की माफिक हम दुनिया में अकेले हैं महकता है जहाँ सारा मुहब्बत की बदौलत ही मुहब्बत को निभाने में फिर क्यों सारे झमेले हैं ये उसकी बदनसीबी […]
ग़ज़ल
पैसों की ललक देखो दिन कैसे दिखाती है उधर माँ बाप तन्हा हैं इधर बेटा अकेला है रुपये पैसों की कीमत को वह ही जान सकता है बचपन में गरीवी का जिसने दंश झेला है अपने थे ,समय भी था ,समय वह और था यारों समय पर भी नहीं अपने बस मजबूरी का रेला है […]
ग़ज़ल
किस ज़माने की बात करते हो रिश्तें निभाने की बात करते हो अहसान ज़माने का है यार मुझ पर क्यों राय भुलाने की बात करते हो जिसे देखे हुए हो गया अर्सा मुझे दिल में समाने की बात करते हो तन्हा गुजरी है उम्र क्या कहिये जज़्बात दबाने की बात करते हो गर तेरा संग […]
गीत
सपने सजाने लगा आजकल हूं मिलने मिलाने लगा आजकल हूं हाबी हुई शख्सियत मुझ पे उनकी खुद को भुलाने लगा आजकल हूं इधर तन्हा मैं था उधर तुम अकेले किस्मत समय ने ये क्या खेल खेले गीत गजलों की गंगा तुमसे ही पाई गीत गजलों को गाने लगा आजकल हूँ जिधर देखता हूं उधर तू […]
ग़ज़ल
किसी के दिल में चुपके से रह लेना तो जायज है मगर आने से पहले कुछ इशारे भी किये होते नज़रों से मिली नजरे तो नज़रों में बसी सूरत काश हमको उस खुदाई के नज़ारे भी दिए होते अपना हमसफ़र जाना ,इबादत भी करी जिनकी चलतें दो कदम संग में ,सहारे भी दिए होते जीने […]
ग़ज़ल – ये कैसा परिवार
मेरे जिस टुकड़े को दो पल की दूरी बहुत सताती थी जीवन के चौथेपन में अब ,बह सात समन्दर पार हुआ . रिश्तें नातें -प्यार की बातें , इनकी परबाह कौन करें सब कुछ पैसा ले डूबा ,अब जाने क्या ब्यबहार हुआ .. दिल में दर्द नहीं उठता है भूख गरीबी की बातों से धर्म […]
ग़ज़ल
वक़्त की साजिश नहीं तो और किया बोले इसे पलकों में सजे सपने ,जब गिरकर चूर हो जाये अक्सर रोशनी में खोटे सिक्के भी चला करते न जाने कब खुदा को क्या मंजूर हो जाए भरोसा है हमें यारो की कल तस्बीर बदलेगी गलतफमी जो अपनी है बह सबकी दूर हो जाये लहू से फिर […]
ग़ज़ल
जीना अब दुश्बार हुआ अज़ब गज़ब सँसार हुआ रिश्तें नातें प्यार बफ़ा से सबको अब इन्कार हुआ बंगला ,गाड़ी ,बैंक तिजोरी इनसे सबको प्यार हुआ जिनकी ज़िम्मेदारी घर की वह सात समुन्द्र पार हुआ इक घर में दस दस घर देखें अज़ब गज़ब सँसार हुआ मिलने की है आशा जिससे उस से सब को प्यार […]
स्वाद
उम्र के एक खास पड़ाव तक तो खाने में नए-नए ट्विस्ट चाहिए होते हैं न ! जैसे साऊथ इंडियन, नार्थ इंडियन, चाईनीज़, ये तड़का, वो तड़का, इसका कांबो उसके साथ, टेस्ट के लिए नार्थ इंडियन डिश में साऊथ इंडियन ट्विस्ट, कभी महाराष्ट्रियन तो कभी दाल बाटी, कभी झींगा का कुरकुरापन तो कभी तंदूरी चिकन, कभी […]