ग़ज़ल : सफर – घर से मरघट तक
आँख से अब नहीं दिख रहा है जहाँ, आज क्या हो रहा है मेरे संग यहाँ . माँ का रोना
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Read Moreग़ज़ल (किसी के हाल पर यारों,कौन कब आसूँ बहाता है) दिल के पास है लेकिन निगाहों से जो ओझल है
Read Moreसुबह हुयी और बोर हो गए जीवन में अब सार नहीं है रिश्तें अपना मूल्य खो रहे अपनों में वो
Read Moreहर लम्हा तन्हाई का एहसास मुझको होता है जबकि दोस्तों के बीच अपनी गुज़री जिंदगानी है क्यों अपने जिस्म में
Read Moreहर सुबह रंगीन अपनी शाम हर मदहोश है वक़्त की रंगीनियों का चल रहा है सिलसिला चार पल की जिंदगी
Read Moreमन से मन भी मिल जाये , तन से तन भी मिल जाये प्रियतम ने प्रिया से आज मन
Read Moreधार्मिक मान्यताओं के अनुसार रात्रि यानी अंधकार का वक्त बुरी शक्तियों या भावनाओं के हावी होने का समय होता है,
Read More(एक ) अपने थे , वक़्त भी था , वक़्त वह और था यारों वक़्त पर भी नहीं अपने बस
Read Moreतुम्हारा साथ ही मुझको करता मजबूर जीने को तुम्हारे बिन अधूरे हम विवश हैं जहर पीने को तुम्हारा साथ पाकर
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