गजल : दरख़्त व छाँव
दरख्तों की छाँव तो बिताएं गिन गिन महल बहुत मुश्किल से काटते हैं दिन काश रुक पाता नदी लिए पेड़ों
Read Moreदरख्तों की छाँव तो बिताएं गिन गिन महल बहुत मुश्किल से काटते हैं दिन काश रुक पाता नदी लिए पेड़ों
Read More“चौताल” फ़ाग गीत पट धानी चुनर सरकाओ, लली तोहें रंग डालूं चित चंचल नैन चलाओ, लली रंग अंग डालूं
Read More“कुंडलिया” होली हमने खेल ली ,सीमा पर ललकार माँ माटी को चूम ली, तेरी जय जयकार तेरी जय जयकार,
Read More“शायद वह जा रही है” शायद वह जा रही थी॥ मुड़ मुड़ कर उसका देखना ठिठक कर रुकना फिर पैरों
Read Moreमालिनी (सम छंद) नगण नगण मगण यगण यगण – 15 वर्ण रस रंग लय मोरा फ़ाग हारा जहाँ है सुख
Read Moreजब अपना कोई होता नहीं, इर्द गिर्द यार मेरे पहुँच जाता हूँ गाँव अपने, दूर रख गुबार मेरे उठा लाता
Read Moreजा मत छोड़ मकान दलान मलाल जिया मत राखहु स्वामी धीरज धारहु आपुहि मानहु जानहु मान न पावत नामी।। खोजत
Read Moreशीर्षक शब्द -नदी/नदिया /दरिया /जलधारा आदि “दोहा मुक्तक” नदी सदी की वेदना, जल कीचड़ लपटाय कल बल छल की चाहना,
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