पाया प्रिय नवजात शिशु, अपनी माँ का साथ। है कुदरत की देन यह, लालन-पालन हाथ।। लालन-पालन हाथ, साथ में खुशियाँ आए। घर-घर का उत्साह, गाय निज बछड़ा धाए।। कह गौतम कविराय, ठुमुक जब लल्ला आया। हरी...
कूप में धूप मौसम का रूप चिलमिलाती सुबह ठिठुरती शाम है सिकुड़ते खेत, भटकती नौकरी कर्ज, कुर्सी, माफ़ी एक नया सरजाम है सिर चढ़े पानी का यह कैसा पैगाम है।। तलाश है बाली की झुके धान...
छा रही कैसी बलाएँ क्या बताएँ साथियो द्वंद के बाजार में क्या क्या सुनाएँ साथियो क्यों तराजू को झुकाते बाट हैं बेमाप के तौलना तो देखना पाला उठाएँ साथियो।। क्यों गली में शोर है आया कहाँ...
अजी यह इस डगर का दायरा है सहज होता नहीं यह रास्ता है कभी खाते कदम बल चल जमीं पर हक़ीकत से हुआ जब फासला है।। उठाकर पाँव चलती है गरज बहुत जाना पिछाना फैसला है।।...
ठंडी की ऋतु घर घर अलाव बुझती आग।।-1 गैस का चूल्हा न आग न अलाव ठिठुरे हाथ।।-2 नया जमाना सुलगता हीटर धुआँ अलाव।।-3 नोटा का कोटा असर दिखलाया मुरझा फूल।।-4 खिला गुलाब उलझा हुआ काँटा मूर्छित...
पाँव के संग पायल खनकती सखी देख नथ मोर घायल सुलगती सखी आज तड़के सवेरे नजर लड़ गयी होठ लाली लुभायल ललकती सखी।। काश होते सजन घर अंगना मिरे साध मन की पुरायल सँवरती सखी।। हाथ...
सखा साया पुराना छोड़ आये वसूलों का ठिकाना छोड़ आये न जाने कब मिले थे हम पलों से नजारों को खजाना छोड़ आये।। सुना है गरजता बादल तड़ककर छतों पर धूप खाना छोड़ आये।। बहाना था...
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