“दोहा मुक्तक”
शीर्षक — पहाड़ / पर्वत / भूधर गिरि से उतरती गंगा, कलकल करती धार भूधर भूमि निहारता, जल ज़मीन का
Read Moreशीर्षक — पहाड़ / पर्वत / भूधर गिरि से उतरती गंगा, कलकल करती धार भूधर भूमि निहारता, जल ज़मीन का
Read Moreकाँटों भरी न जिंदगी, काँटों भरा न ताज माँ धीरज रख निकालूँ, पैरन तेरे आज पैरन तेरे आज , कभी
Read Moreदिन गुजर होता है रात बसर होती है सुबह शाम हँसती है धूप में पिघलती है बारीश में बरसती है
Read More“गज़ल” बहर-1222 1222 1222 1222 मतला मिलो तुम आज मेले में बहाना मत बना देना किताबों में न खो जाना
Read More“गज़ल” किसने इसे फेंका यहाँ, रद्दी समझ कर के हाथों से उठा अपने, पड़ी किसकी छबी है ये यहाँ तो
Read Moreमंच को सादर निवेदित है कुछ राधेश्यामी छंद पर प्रयास………. 16-16 पर यति, मात्रा भार- 32, पदांत गुरु, दो दो
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