नफरत के बाजार में ,बिकता नही गुलाब ,यहां सभी देते रहे ,काँटों भरे जवाब। सच कहना आसान है ,पर उसमे है झोल ,कांटे जिस सच से चुभें,वह सच कभी न बोल। असफलता को देखकर,क्यों घबराता यार,ये तो शूल पड़ाव है,आगे फूल बहार। फूल तुझे जो चाहिए ,करना शूल क़ुबूल ,यह जीवन का सत्य है ,जग […]
Author: महेंद्र कुमार वर्मा
बरखा रानी — बाल मुक्तक
ख़ुशी फुहारें लेकर आई बरखा रानी ,मस्त बहारें लेकर आई बरखा रानी ,फूल खिल उठे पत्तों में आया नवजीवन ,हरे नज़ारे लेकर आई बरखा रानी।— महेंद्र कुमार वर्मा
नदी ख़ुशी से बहती चल
नदी ख़ुशी से बहती चल, सारे सुखदुख सहती चल। पथ में जब पत्थर रोकें ,जमके उनसे लड़ती चल। अपनी अमृत के जल से , सबके पाप निगलती चल। रुकना तुझे क़ुबूल नहीं ,सबसे ऐसा कहती चल। सच की राहों पे चल के ,सारे झूठ मसलती चल। आशा के नव दीप जला अन्धकार को छलती चल। […]
मतलब
मतलब तो कुछ और है ,कहते हैं कुछ और,उनकी हर इक बात पर,करना होगा गौर .करना होगा गौर ,बने है चतुर सयाने ,अपनी बातें कहें ,दूसरों की ना मानें ,कहते गोलमगोल ,दिखाते हरदम करतब,बोलें जब खलिहान ,खेत होता है मतलब। — महेंद्र कुमार वर्मा
कैसी जीवन रीत
अपना मतलब परम है,बाकी सब बेकार,जो दूजों की सोचता ,हरदम खाता मार। —बेइमानी के युग में,करो न सच की बात,जो सच बोला आपने ,पाओगे आघात। —हर दिन देती जिंदगी,खुशियों के उपहार ,लेकिन उसके लिए भी ,कुछ शर्तें हैं यार। —कसमे खाते जो रहे ,सदा प्रेम के मीत ,उनसे ही धोखा मिला ,कैसी जीवन रीत।—धोखा देने […]
गर्मी के दिन
गर्मी के दिन गाते आए,छुट्टी की सौगातें लाए। खेलकूद मस्ती मौजों के ,सुखद दिवस औ रातें लाए। खूब पढ़ो किस्से कविताएं ,मजेदार वो बातें लाए। पूरी हॉबी कौन करेगा,पापा ड्राइंग की किट लाए। कोई जाएगा पहाड़ पर ,चीकू को सागर तट भाए। खुशियों वाले फूल खिलाने ,गरमी दिन मुस्काते आए। — महेंद्र कुमार वर्मा नोट […]
सपने देखो खुशियों वाले
सपने देखो खुशियों वाले ,जिनमे ना हो दुख के ताले। अन्धकार को दूर भगा के ,लाओ मस्ती भरे उजाले। मेले में जा कर खोजो जी ,ठेले चाट समोसे वाले। मेले में जा कर देखो जी ,जादू वाले खेल निराले। सपने में हों गुड्डे गुड़िया ,जिनके मुखड़े भोले भाले। नित देखो तुम नए नवेले ,सपने जो […]
गरमी के सुर ताल
सुना रही है जिंदगी,पतझर वाले गीत,अब बहार सूझे नहीं,इस गर्मी में मीत। गरमी से बेहाल हैं ,नर नारी आबाल,उनको झटपट चाहिए,शीतलता की ढाल। गरम हवाएं छेड़तीं ,गरमी के सुर ताल,कोमल सुर्ख गुलाब है ,गरमी से बेहाल। गरमी की ये तपन है ,और महीना जून ,मानसून से बोलिये ,लाए बरखा सून। धूप चुभ रही शूल सी […]
होली दीवाने
होली के रंग में रंगा ,खुश हो शहर तमाम,खुशियाँ झूमीं हर तरफ,नाच उठे गुलफाम,नाच उठे गुलफाम,ढोल बज उठे सुहाने , कुछ पे चढ़ा गुलाल ,कुछ हो गए दीवाने ,कहें ‘धीर’कविराय ,चली होली की टोली ,सब के हाथ गुलाल ,सभी कर रहे ठिठोली। — महेंद्र कुमार वर्मा
काला कौवा
काला कौवा शोर मचाता,काला कौवा तनिक न भाता। सभी मारते उसको पत्थर ,पर वो जल्दी से उड़ जाता। घर की छत पर जब भी आता ,मन को वो शंकित कर जाता। नन्हे चीकू के हाथों से ,छीन रोटियां वो उड़ जाता। जब भी वो चालाकी करता,कौवा हरदम मुंह की खाता। —महेंद्र कुमार वर्मा