गीतिका/ग़ज़ल

कभी कुछ लाभ होता है कभी नुकसान होता है

कभी कुछ लाभ होता है कभी नुकसान होता है कहाँ सौदे का कोई तयशुदा ईमान होता है   कोई दौलत में बिक जाता है तो कोई मुहब्बत में हर इक ईमान का अपना अलग परिमाण होता है   ग़ज़ल कहनी नहीं पड़ती ख़ुद अपने आप होती है तेरे अहसास का जब जब मुझे फ़रमान होता […]

गीतिका/ग़ज़ल

जब भी बोलो अच्छा बोलो

जब भी बोलो अच्छा बोलो सागर जैसे गहरा बोलो   झूठ नहीं सच बन जाएगा चाहे जितना ऊँचा बोलो   दुनिया मक्खनबाजी समझे इतना भी मत मीठा बोलो   हर कोई दुश्मन बन जाए क्योंकर इतना कड़वा बोलो   बोली से पहचान बने हैं सच्चा बोलो बढ़िया बोलो   Kuldeep

गीतिका/ग़ज़ल

भुलाता जा रहा है सादगी को

भुलाता जा रहा है सादगी को ये क्या होने लगा है आदमी को   जिधर देखो अँधेरा ही अँधेरा चलो हम ढूँढ लाएँ रोशनी को   उठाता हाथ है औरत पे जो भी वो गाली दे रहा मर्दानगी को   सभी को सादगी अच्छी लगे है नहीं चाहे कोई आवारगी को   फ़कीरी का अलग […]

गीतिका/ग़ज़ल

ख़िदमत में अपनी माँ की गुज़ारा करेंगे हम

ख़िदमत में अपनी माँ की गुज़ारा करेंगे हम ऐसे बुलंद अपना सितारा करेंगे हम आँसू बहा के अब न खसारा करेंगे हम मिश्री सी ज़िंदगी को न खारा करेंगे हम बनकर शज़र मिलोगे हमें जब कभी भी तुम ख़्वाहिश के परिंदों को उतारा करेंगे हम अब तो सुलह का रास्ता निकले कोई यहाँ कब तक […]

गीतिका/ग़ज़ल

ये नहीं सच कि मुझे उससे मुहब्बत कम थी

ये नहीं सच कि मुझे उससे मुहब्बत कम थी उसकी नज़रों में वफ़ाओं की ही क़ीमत कम थी टूटकर बाग़ में बिखरे थे वही गुल केवल जिनमें तूफ़ान से लड़ पाने की ताक़त कम थी मेरे मौला तेरी नाराज़गी को क्या समझूँ बेअसर मेरी दुआ थी कि इबादत कम थी थोड़े आंसू थे, शिकायत भी […]

गीतिका/ग़ज़ल

अगर मेरी वफाओं में मिलावट आ गयी होती

अगर मेरी वफाओं में मिलावट आ गयी होती यक़ीनन मेरी फ़ितरत में बनावट आ गयी होती कभी देखा जो होता आपने मेरी तरफ हँसकर मेरे सूखे जिगर में कुछ तरावट आ गयी होती गिले शिकवे मसाइल सब भुलाकर हम मिले होते तो फिर चाहत के रिश्तों में कसावट आ गयी होती अगर महसूस करते आप […]

गीतिका/ग़ज़ल

बनाकर ज़िन्दगी अपनी बहुत दुश्वार बैठा है

बनाकर ज़िन्दगी अपनी बहुत दुश्वार बैठा है जिसे देखो वही इस प्यार में बीमार बैठा है मुहब्बत के अदब के वास्ते घातक है वो इंसान लिए दिल में जो नफ़रत का कोई हथियार बैठा है भले कोई करे इनकार मेरी बात से लेकिन हरिक इंसान के भीतर छुपा मक्कार बैठा है किया इज़हार मैंने बारहा […]

गीतिका/ग़ज़ल

अब आँखों में पहले सा पानी कहाँ है

अब आँखों में पहले सा पानी कहाँ है नए लोगों में हक़बयानी कहाँ है नए दौर में हो गया प्यार फ़ैशन वो पहले सी सच्ची रवानी कहाँ है अदब और तहज़ीब का ये ठिकाना ज़माने में भारत का सानी कहाँ है ये माना मुहब्बत अभी भी है तुमको मगर बात अब वो पुरानी कहाँ है […]

गीतिका/ग़ज़ल

हक़ीक़त को छुपाने से हक़ीक़त कम नहीं होती

हक़ीक़त को छुपाने से हक़ीक़त कम नहीं होती मुहब्बत की किसी भी हाल क़ीमत कम नहीं होती सहर से शाम तक ये जूझते हैं ज़िंदगानी से गरीबों की मगर फिर भी मुसीबत कम नहीं होती पिसर कितना भी नालायक कोई चाहे निकल जाए मगर माँ है कि जिसके दिल में चाहत कम नहीं होती अलग […]