मेरे मुखरित मधुर मधुबन की बिटिया आज प्यारी दुल्हनिया बनी आ -आ के ऋतु करें सोलह श्रृंगार देखो छायी है कैसी अजब बहार । झूमर झूमे शीश पे जज्बात लिए बिंदिया चमके प्यार की लाली लिए चूड़ियाँ हैं खनके खुशियों को लिए पायलिया खनके प्रीत मिलन के लिए । विदा बेला में परिजन देते बधाई […]
Author: मंजु गुप्ता
साहित्यिक सेतु
कामयाबी के शिखर पर ए सखी शकुन ! तू बड़ी याद आयी तूने ही वीरान , पतझड़ जिंदगी में साहित्यिक बहारों का चमन खिलाया था तेरी स्नेहिल ऊँगली थाम के मुम्बई की जीवन रेखा लोकल से मीलों की दूरियाँ तय कर साहित्यिक कार्यक्रमों के उपस्थिति दर्ज कराते थे अपरिचित , अजनबी साहित्यकार बिरादरी देश , […]
सीढ़ी
जानी-पहचानी घर की सीढ़ी जिसके सौपानों पर नित्य का मेरी सखी का आना – जाना लगा रहता है आज यही सीढ़ी उसके लिए बेरहम निकली वह चढ़ भी न पायी कि वहीं पर गिर गयी कमर पर पड़ी वक्त की ऐसी मार खड़ी भी नहीं हो सकती न लेट सकती हूँ दर्द के अंगारे , […]
गजल
प्रतिभाओं की धनी गुणवान थी हमारी माँ परहित की नदी सी गतिवान थी हमारी माँ सौम्य ,शांत , शील स्वरूप नाम उनका शांति सीता , लक्ष्मी – सी रूपवान थी हमारी माँ धर्म की थी संवाहक नीति नियम की वाहक विकार से दूर साधनावान थी हमारी माँ विमल कमल सा रहा जीवन जग में समर्पित […]
सृष्टि की सृजनहार बेटियाँ
अब दब नहीं सकती आधी आबादी की ये बेटियाँ , जो दबाएँ इन्हें बन जाएँगी संहार की चिंगारियाँ , नहीं हैं अब भोग , विलास , वासना की ये कठपुतलियाँ , हैं ये प्रतिभाओं के आसमान पर चमकती बिजलियाँ. अभावों की परिधियों को लाँघ के रुतवा है दिखा रहीं , गीता – बबिता , सिंधु […]
वासंती श्रृंगार
जब से तुम मेरे मन में हो उतरे जीवन के तुम प्राणदाता बन गए बासंती श्रृंगार मन को भाए रूप भी तुम्हें देख के इतराए। वीरान मन में प्रेम कोंपलें उगी अब मन वश में करना आसान नहीं रंगीला मौसम प्यार का बताए मेरे मीत ! तन -मन हैं बौराए। चंदा की चाँदनी लाई सौगात […]
झूठ और सच
बच्चे सच को बोले झूठ और झूठ को बोले सच बच्चे ने मुख्याध्यापिका से छुट्टी लेने के लिए लिया झूठ का सहारा मर गए मेरे दादा जी दे दो मुझे छुट्टियाँ सुन कर उन्होंने दे दी उसको छुट्टियाँ शोक जताने आई घर जब उसकी मुख्याध्यापिका घर आते देख उन्हें तभी पोते ने दादा से […]
आरक्षण की आग
आरक्षण की आग से देश सारा झुलस रहा ६५ सालों की आरक्षण की परिधि बाँहें फैलाए पाँव पसार रही जाति – धर्म की भांग खिलाके योग्य प्रतिभाओं का हनन करे खींच के जाति – धर्म भेद की दीवार अल्प ज्ञानी बाजी रहे मार आरक्षण का जुल्म से प्रतिभाओं का न करें शिकार करें मंथन हम […]
बालिका शिक्षा संस्कार, रोजगार, ज्ञान से भारत का भविष्य उन्नत होगा
सरोजनी प्रीतम का व्यंग्य कितना सार्थक है आज के परिपेक्ष्य में- ‘ पुस्तक मेला भी पशु मेला नजर आया . काला अक्षर भैंस बराबर पाया . ‘ उपर्युक्त पंक्तियाँ भारतीय समाज की निरक्षरता को दर्शाती है और ग्रामीण परिवेश की बालिकों पर सटीक बैठती हैं . इक्कीसवीं सदी के हिंदु समाज में बालिकाओं के प्रति […]
सतरंगा नववर्ष
सतरंगा नववर्ष जग में फिर से आ गया उत्साह, उमंग का साज ले फिर से आ गया प्रेम की बांसुरी के सुर सजाने आ गया दरकते रिश्तों की गाँठें खोलने आ गया दुःख, गम के आँसू पौंछ ख़ुशी देने आ गया सतरंगा नववर्ष जग में फिर से आ गया । खुदगर्ज मानव अपनी मनमानी है […]