Author: *मनमोहन कुमार आर्य

धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

महान आर्य संन्यासी स्वामी श्रद्धानन्द

ओ३म् वैदिक धर्म एवं संस्कृति के उन्नयन में स्वामी श्रद्धानन्द जी का महान योगदान है। उन्होंने अपना सारा जीवन इस

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धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

स्वामी श्रद्धानन्द का पावन चमत्कारिक व्यक्तित्व

ओ३म् स्वामी श्रद्धानन्द (1856-1926), पूर्वनाम महात्मा मुंशीराम, महर्षि दयानन्द के प्रमुख शिष्यों में से एक थे जिन्हें अपने धर्मगुरू के

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धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

मनुष्य की उन्नति के सार्वभौमिक 10 स्वर्णिम सिद्धान्त व मान्यतायें

ओ३म् मनुष्य जीवन ईश्वर की जीवात्मा को अनमोल देन है। सभी मनुष्यों का कर्तव्य है कि वह इस संसार व

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धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

मनुष्य में संस्कार व गुणों का आधान ही समाज कल्याण है

ओ३म स्वामी वेदानन्द तीर्थ (1892-1956) वेदों के शीर्षस्थ विद्वान थे। उन्होंने जो साहित्य़ सृजित किया, वह मनुष्य की उन्नति के

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धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

ईश्वर व जीवात्मा का यथार्थ उपदेश देने से महर्षि दयानन्द विश्वगुरु हैं

ओ३म्   यह संसार वैज्ञानिकों के लिए आज भी एक अनबुझी पहेली ही है। आज भी वैज्ञानिक इस सृष्टि के

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धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

मुक्त दयानन्द मोक्ष में आर्यसमाज की दुर्दशा से दुःखी व संतप्त

ओ३म्   महर्षि दयानन्द का अजमेर में दीपावली, सन् 1883 को देहावसान हुआ था। वेद एवं वैदिक साहित्य का अध्ययन

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सामाजिक

महर्षि दयानन्द प्रोक्त वेद सम्मत ब्राह्मण वर्ण के गुण-कर्म-स्वभाव

ओ३म् वैदिक वर्ण व्यवस्था के सन्दर्भ में यह जड़-चेतन संसार ईश्वर से उत्पन्न हुआ है। ईश्वर, जीवात्मायें और प्रकृति, तीन 

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धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

ईश्वर प्रदत्त ज्ञान वेद सरल व सुबोध हैं

ओ३म् सृष्टि के आदि में मनुष्यों को ज्ञानयुक्त करने के लिए सर्वव्यापक निराकार ईश्वर ने चार आदि ऋषियों अग्नि, वायु,

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धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

गृहस्थ जीवन की उन्नति के 16 स्वर्णिम सूत्र

ओ३म्                                मनुष्य के वैदिक जीवन के चार सोपान है ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ एवं संन्यास  आश्रम। ब्रह्मचर्य आश्रम का काल आरम्भ

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