ओ३म् अविद्या, अज्ञान व अन्धविश्वास ये सभी शब्द व इनसे उत्पन्न धार्मिक व सामाजिक प्रथायें परस्पर पूरक व एक दूसरे पर आश्रित हैं। यदि अविद्या, अज्ञान व स्वार्थ आदि न हों तो समाज में अन्धविश्वास उत्पन्न...
ओ३म् मनुष्य व समाज की उन्नति आर्यसमाज में जाने व आर्यसमाज के प्रचार के कार्यों से होती है। आर्यसमाज का छठा नियम है कि आर्यसमाज को मनुष्यों की शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक उन्नति कर संसार का...
ओ३म् हमारा यह संसार लाखों व करोड़ो वर्षों पूर्व बना है। यह अपने आप नहीं बना और न ही स्वमेव बिना किसी कर्ता के बन ही सकता है। इसका बनाने वाला अवश्य कोई है। जो भी...
ओ३म् मनुष्य मननशील प्राणी को कहते हैं। परमात्मा ने इस संसार एवं इसके सभी प्राणियों को उत्पन्न किया है जिनमें मनुष्य भी एक प्राणी है। मनुष्य की अनेक विशेषतायें हैं जो अन्य प्राणियों में नहीं हैं।...
ओ३म् वैदिक धर्म एवं संस्कृति इस सृष्टि की आद्य एवं प्राचीन धर्म एवं संस्कृति है। यह धर्म व संस्कृति ईश्वर प्रदत्त ज्ञान वेद के आधार पर प्रचलित एवं प्रसारित हुई है। महाभारत काल तक इसका प्रचार...
ओ३म् मनुष्य जीवन की प्रमुख आवश्यकताओं में शरीर का पालन व पोषण हैं। शरीर का पालन तो माता-पिता आदि परिवारजनों द्वारा मिलकर किया जाता हैं और पोषण माता-पिता आदि करते हैं और युवा होने व किसी...
ओ३म् महान अमर आर्य-हिन्दू महापुरुषों की श्रृंखला में इतिहास में एक नाम वीर बन्दा वैरागी का भी है। हिन्दू जाति का यह दुर्भाग्य है कि इसने अपने इस महापुरुष को विस्मृत कर दिया है। आर्यसमाज के...
जिस सर्वव्यापक, सर्वशक्तिमान तथा सर्वज्ञ चेतन सत्ता ने इस संसार की रचना करने सहित हमारे शरीरों को बनाया है और जो इस सब जगत को चला रही है उस सत्ता को परमात्मा या ईश्वर नाम से...
ओ३म् वेद ईश्वर प्रदत्त ज्ञान है जो सृष्टि के आरम्भ में ईश्वर ने चार ऋषियों अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा की आत्माओं में अपने जीवस्थ स्वरूप से दिया था। ज्ञान, कर्म, उपासना और विज्ञान से युक्त...
ओ३म् मध्यकाल में देश में मृतक पूवजों का श्राद्ध करने की अवैदिक परम्परा आरम्भ हुई थी। ऐसा प्रतीत होता है कि इसके पीछे एक कल्पना है जिसके अनुसार मरने के बाद आत्मा को पुनर्जन्म नहीं मिलता...
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