गीत सावन बैरी याद पिया की दिलाये रे, लहरा हरियाली गले से लिपट जाये रे| मोरा पिया बम्बई में कमाये , होली दिवाली खाली दरस दिखावे, ऐसन कमाई के आग लग जाये रे |… लहरा हरियाली गले से लिपट जाये रे| रिमझिम बरसे मोरी अखियाँ बरसे, दरस को अखियाँ पिया मोरी तरसावे, हरियाली ओट अगन […]
Author: मनोज 'मौन'
कुछ रचनाएँ
जीवन-एलबम ********************** जीवन की आपाधापी में, खो जाते है पल ऐसे ही, दामन को छू जाती है बस, यादों के धुधलके से आती जो, तस्वीर निकलती कब एलबम से, “मौन” सोंचते हो जब तुम| इतराते बादल ******************* पिल जाते है काले बादल, जब वह अपने पे आते हैं| नर संहार मचा देते वह, घर बार […]
जीवन का दौर —“मौन”
कुछ लिखने को जी करता है, उन्हें अपना कहने को जी करता है, रात आती है सुलाने लगती है, कोई बात अपना दिल कचोटी है, इस बात का अहसास होता जबतक, लोग प्यार हुआ है यही कहते हैं । “मौन” दीवानापन बहुत याद आता है, पुराने दोस्तों कभी कभी मिल जाया करो। ***+***+***+***+***+**+**+ जीवन का […]
मरीन ड्राईव (1090 चैराहा) बना लखनऊ का नया आकर्षण -मनोज ‘‘मौन’’
लखनऊ शहरवासियों के मध्य कभी बेगम हजरत महल पार्क, ग्लोब पार्क, हाथी पार्क, बुद्धा पार्क, नीबू पार्क आकर्षण का केन्द्र हुआ करते थे। धीरे धीरे समय ने करवट ली लखनऊ में जीवन शैली ने गतिशीलता बढ़ने लगी। हजरतगंज की मशहूर शाम-ए-अवध का शबाब पूरे विश्व में घूमने के लिए मशहूर था। बदलते आधुनिकीकरण के दौर […]
प्रकृति की अव्यवस्था पर एक नज़र
पृथ्वी पर कोई भी जीव एकल जीवन व्यतीत नहीं कर सकता है इसलिए मानव और प्रकृति की परस्पर आत्मनिर्भरता एवं सद्भावनाओं को समाप्त करने से हमारा पारिस्थितिकी तंत्र डगमगा रहा है। पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ती जनसंख्या, औद्योगीकरण, वैभव और ऐश्वर्य प्राप्त करने के उतावलेपन और पर्यावरण पर विजय पाने की लालसा ने प्रतिकूल प्रभाव डाला […]
उदासी और उबासी दोनों ही कठोर है- मौन
जिन्दगी की पुकार को सुनता हूँ तो ऐसा लगता है जैसे जमाने में कुछ है ही नहीं उदासी और उबासी दोनों ही कठोर है मौन इसके पार एक जहां तलाशता हूँ। कोई परेशान है पर मस्त है कोई उदासी से ही त्रस्त है जुगत जिन्दगी को चलाने की मौन बड़ी ही दूर से निहारता हूँ।
ईक लहरा बारिश हो गयी
ईक लहरा बारिश हो गयी शहर गुलाबी हो गये । नदियों के किनारे भीग गये नदियों में बूदें तैर गयी । हवा के झोंके सर्द हुए ईंटों की गर्मी भभक गयी । सडकों पर नाली उफन पडीं छप-छप बच्चों की शुरू भयी। ईक लहरा बारिश कुछ ऐसी भयी मौन मचल कर निकल पड़े ।
बारिश की बूंद सूखने से पहले
भाईयों ये बादल का नजारा कितना सुखद होता अगर, साथ इनके समां-ए-बारिश मौन सब दिलों को सूकूं देता। मै डरता हूँ धरती तेरे सूख जाने से ऐ छुपे मेघ गगन पे छा जा तू, बारिश की बूंद सूखने से पहले जमकर धरा पे बरस जा तू
सांप सूघ गये हलक सूख गये
हलक सूख गये सांप सूघ गये जीवन बगिया हरि हर गये गेहूं खडे आग झुलस गये हलक सूख गये सांप सूघ गये राह विरानी आंख निहारे आधी दुनियां खाख हो गयी सांप सूघ गये हलक सूख गये….
कातर नैन…
रंग बिरंगेंजीवन की स्वर्णिम आभा तेरी हो। तेरे चेहरे का नूर सदा आॅंखों को सुख देता हो। कल्पित स्वर्ण जीवन में तेरे मुकुट के जैसा हो। भीख मांगते हाथ मेरे दानी माता जैसा हो। लूट पड़े या टूट पड़े सब कातर नैन हमारे हो। बाट जोहता मात तेरी मै जित खड़ा, उत दर्शन तेरा हो। […]