तलाक…. उफ्फ से आह तक का सफर ( लेख- (महेश कुमार माटा) तलाक, ये शब्द सुनने में कुछ यूँ लगता है जैसे विवाह के उपरांत उपजी किसी गम्भीर समस्या का अंत हो। विवाहोपरान्त उपजी “उफ्फ” का एक सफल इलाज हो। किंतु उसकी “आह” जीवन भर सुनाई देती है। लाजपत नगर की रहने वाली निशा अपने […]
Author: महेश कुमार माटा
तू मेरे पास आज भी है (कविता)
प्यार के उभरते ज़ज़्बातों का अहसास आज भी है वो जो रखा था तूने अपने हाथों को मेरे हाथों के ऊपर उस छुअन का आभास आज भी है मेरे पलँग के जिस कोने में कुछ पल बैठी थी तू उस जगह की सिलवटें अपनी उसी आकृति में आज भी हैं वो एकांत के कुछ पल […]
अधूरी चाहत
आखिर आज वो पल आ ही गया जिसे सोच सोच कर सीमा पिछले 5 दिन से बारंबार भावुक हो रही थी। उसे वापिस वृन्दावन जाना था, जहाँ उसका पति पिछले 5 दिन से बेसब्री से सीमा की प्रतीक्षा कर रहा था। बड़ी मुश्किल से उसने अपने पति को अपनी बहन के घर दिल्ली भेजने के […]
वो अक्सर कहती है
वो अक्सर कहती है तुम बहुत बोलते हो पल में हंसते हो, पल में ख़ौलते हो वो नही जानती एक दिन उसकी आंखें यूं ही बरस जाएंगी जब तक खुली हैं आँखें जी भर के सुन लो बक बक जिस दिन बन्द हो गयी ये आंखें एक शब्द के लिए भी तरस जाएंगी वो कहती […]
विदाई
क्या हुआ जो तू परायी हो गयी क्या हुआ जो तेरी इस घर से विदाई हो गयी हम कल भी वही थे हम आज भी वहीं है कल भी इस घर की बेटी थी हमारी बहना आज भी इस घर की बेटी है क्या हुआ जो तेरी इस घर से जुदाई हो गयी मत भूलना […]
वो शाम
मुझे याद है वो शाम जब तुम पहली बार मेरे पास आई थीं आंखे नीचे किये थोड़ा मुस्कुराई थी तुम्हारी यूं शर्माती नज़रों से मेरे मन मे एक बात आई थी जो कह दी थी मैने तुम्हे और तुम कैसे सकपकाई थी चाहता तो मैं भी था थोड़ा सा और पास आऊं खींच कर अपनी […]
कल रात
कल रात तू मेरे सपने में आई थी कुछ देर मुझे देख मुस्कुराई थी मैने बहुत की थी कोशिश कि छू के देखूँ तुझको पर छू सकूं इस से पहले ही तेरी आँख भर आयी थी क्या वजह थी उन आंसुओं की ये बात न मेरी समझ आयी थी क्या वो रिश्तों की थी मर्यादा […]
वो शाम
मुझे याद है वो शाम जब तुम पहली बार मेरे पास आई थीं आंखे नीचे किये थोड़ा मुस्कुराई थी तुम्हारी यूं शर्माती नज़रों से मेरे मन मे एक बात आई थी जो कह दी थी मैने तुम्हे और तुम कैसे सकपकाई थी चाहता तो मैं भी था थोड़ा सा और पास आऊं खींच कर अपनी […]
मुझे पता है
मुझे पता है तू मुझसे मिलने के लिए अपनी किस्मत से लड़ रही होगी अपनी सखियों की आई डी से मेरी कविताओं को छिप छिप कर पढ़ रही होगी मुझे यह भी पता है तू मुझे देखने के लिए कल्पना की उड़ान भर रही होगी कोई देख न ले तुझे रोते हुए मुँह छिपाकर आंगन […]
अष्टमी
अष्टमी (लघु कथा ) दिव्या पुलिस स्टेशन खड़ी थी। मेट्रो स्टेशन पर मनोज ने उसके साथ बदतमीज़ी की थी। अपने बयान में दिव्या ने बताया कि मनोज काफी देर तो उसे घूर रहा था और जब मेट्रो ट्रेन में प्रवेश हुआ तो उसके बाद जानबूझ कर अश्लील हरकतें कर रहा था। लिहाजा वहीं उसने मनोज […]