अब ज़रूरत ही नहीं और शनासाई की । शह्र में चर्चा है जब आपकी रानाई की ।।1 सिर्फ़ मतलब के लिए लोग यहाँ मिलते हैं । कमी दिखने लगी रिश्तों में तवानाई की ।।2 कीमत ए इश्क़ पता चल गया उसको जानां ! उम्र भर जिसने तेरे कर्ज़ की भरपाई की ।।3 वो मुहब्बत के […]
Author: *नवीन मणि त्रिपाठी
आइनों को बुरा मत कहा कीजिये
आइनों को बुरा मत कहा कीजिये । आइने जो कहें वो सुना कीजिये ।।1 हर्फ़ उभरे हैं उल्फ़त के रुख़सार पर । उनके चेहरे को कुछ तो पढा कीजिये ।।2 आज महफ़िल में वो आएंगे बेनक़ाब । दिल न टूटे किसी का दुआ कीजिये ।।3 है मुनासिब नहीं ख़ामुशी आपकी । गर हैं बीमारे ग़म […]
ग़ज़ल
तुम्हारे शह्र में गर हम ठहर गए होते ।। रक़ीब पर ही हमारा क़तर गए होते ।। अगर न मिलती हमें तुमसे ये पज़ीराई । हमारे ख़्वाब यकीनन बिखर गए होते ।। किया है जितना ज़माने ने तब्सिरा उन पर । न होता इश्क़ तो कब के वो मर गए होते ।। रहा ये अच्छा […]
ग़ज़ल
नफ़रत की है तलब न किसी ख़्वार की तलब । इंसां को है ज़रूरी फ़क़त प्यार की तलब ।।1 आएंगे बार बार वो दीवाने हुस्न के । होगी जिन्हें यूँ आपके दीदार की तलब ।।2 पहले जुनून ए इश्क़ में पागल तो हो के देख । पूछेंगे लोग तब कहीं बीमार की तलब ।।3 बिकता […]
ग़ज़ल
गुलाबी आरिज़ों पर रंग की बौछार होली में । सनम का कीजिये साहब ज़रा दीदार होली में ।। बनी है ख़ास ठंढाई मिलाकर भंग की गोली । नहीं सुनना है कोई आपका इनकार होली में ।। कहीं भीगी है चूनर तो कहीं धोती हुई गीली । हुए हैं ख़्वाब रंगों के सभी साकार होली में […]
ग़ज़ल
जिनके चेहरे पे कशिश जुल्फ़ में रानाई हो । काश उनसे भी मेरी थोड़ी शनासाई हो ।।1 लफ़्ज़ ख़ामोश रहें बात हो दिल की दिल से। रब करे उसकी मुहब्बत में ये गहराई हो ।।2 चाँद छूने की तमन्ना तो हो जाए पूरी । मेरी चाहत पे अगर आपकी बीनाई हो ।।3 वो तबस्सुम ,वो […]
ग़ज़ल – क़ातिलों के साथ जब हमको नज़र आई सियासत
कैसे कह दें मुल्क में कितनी निखर आयी सियासत । क़ातिलों के साथ जब हमको नज़र आई सियासत ।। चाहतें सब खो गईं और खो गए अम्नो सुकूँ भी । इक तबाही का लिए मंज़र जिधर आई सियासत ।। नफ़रतों के ज़ह्र से भीगा मिला हर शख़्स मुझको । कुर्सियों के वास्ते जब गाँव- घर […]
ग़ज़ल
बहुत बीमार होती जा रही है । सियासत ख़्वार होती जा रही है ।। दिलों के दरमियां कैसे चमन में । खड़ी दीवार होती जा रही है ।। बिका है मीडिया जिस दिन से यारो। जुबाँ लाचार होती जा रही है ।। सितम पर आपकी बेशर्म चुप्पी । हदों से पार होती जा रही है […]
ग़ज़ल
यूँ दफ़अतन तू मुझसे मेरी आरज़ू न पूछ । इस दिल की बार बार नई जुस्तुजू न पूछ ।। हर सिम्त रहजनों की है बस्ती दयार में । कब तक बचेगी यार यहाँ आबरू न पूछ ।। क़ातिल पे रख नज़र को तू खामोशियों के साथ । किसने बहाया अम्न का इतना लहू न पूछ।। […]
ग़ज़ल
ये किस सांचे में ढाला जा रहा है । मेरे हक़ का निवाला जा रहा है ।। मुनाफ़ा जिनसे हासिल था उन्हीं का । निकाला अब दिवाला जा रहा है । अज़ब है ये तुम्हारी मीडिया भी । हमेशा सच को टाला जा रहा है ।। वतन को डस लिया वो सर्प देखो । जिसे […]