कविता

कविता : होली

होली ! हाँ कब की होली मैं तो तेरी पिया उस पल से जब तिरछी नजर से तुमने मुझे देखा था और मैं खो गयी थी उन आँखों मैं हाँ उस पल भी जब तुमने मुझे हाथ थाम कर वरमाला पहनाई थी और मैं बंध गयी थी उसी पल तेरे प्यार में हाँ उस पल […]

कहानी

मेरी लाइफ लाइन

झुन्झुलाते हुए निमिषा ने फ़ोन बिस्तर पर पटक दिया और बुदबुदाने लगी- “कितना बिजी रहते हैं आप ? मेरे लिए तो फुर्सत ही नही आपको। बात मुझसे करते हुए भी आँखे कंप्यूटर स्क्रीन पर अटकी रहती होंगी ऑफिस में |  मेरी बाते सुने बिना ही हाँ न का जवाब आता रहता हैं ” सुनील एक मल्टीनेशनल कम्पनी में […]

कविता

खंडहर

सुनसान खंडहर सी हवेली इक्का दुक्का कभी कभी पंखो की फरफराहट दीवारो की तहों में लिसडी अनेको कहानियां बादशाहत के किस्से बदगुमानी का रुदन उखड़ते गारे के संग कायम हैं अभी भी टूटा फूटा वजूद लिए कोई मानता क्यों नही एक उम्र के बाद नारी मन भी खंडहर हो जाता हैं अनचाहे ही अनजाने में […]

लघुकथा

लघुकथा : नियम

रूल बना दिया था उसने। आज से कुछ भी हो सब एक साथ डेनिंग टेबल पर डिनर करेंगे। दिन रात फ़ोन में आँखें गढ़ाए रहने वाले उसके बच्चे परस्पर संवाद भी लिखकर करते । रसोई से डोंगे लाते हुए उसने पति को बिटिया को आवाज़ लगाने को कहा। तीन बार आवाज़ लगाने पर भी जब […]

लघुकथा

लघुकथा : पाचन शक्ति

“हाँ हाँ !! हमारी कार हैं ले जाएगा बाजार ! सारी दुनिया के बच्चे कार लेकर घूमते हैं एक इनको हर बात पर टोकना होता हैं बच्चों को।” रसोई से अमृत जोर से चिल्लाते हुए बोली ” १८ साल से कम का हैं तो क्या ?? लगता तो २२- २४ बरस का हैं ! अब […]

कविता

माँ मुझे जीना है…

माँ क्यों कहती थी तुम? बाहर जाओ तो एक पुरुष के साथ जाओ पिता , पति, पुत्र या भाई मैं एक पुरुष के साथ ही तो बाहर थी जो न पिता था ना ही भाई पर उसने साथ निभाने की कसम थी खाई लड़ गया न वोह उन दरिंदो से जो पुरुष ही थे काश […]

कविता

चाय

एक चाय की प्याली मुंडेर पर रखे गुम हो गयी हूँ सोचो में था न एक दिन जब मुझे चाय पसंद नही थी और तुम थे पक्के पियक्कड़ न आँख खुलती थी बिना एक घूँट अन्दर जाए न शाम होती थी तब मुझे लगता था कैसे बन्दा हैं इतनी चाय !! और आज !! तुम […]

कविता

तेरी यादें

तेरे यादों का लिहाफ ओढ़ कर मे कल सारी रात चलती रही तुम ऐसे तो न थे तुम ऐसे कब से हुए.. मैं अपनी उँगलियों में …सपनो कि सीपिया पहन के अधूरी चाहत से यूँ ही बावरी सी चलती रही रात भर दोस्ती आंसुओं से भी कि …तो कुछ मीठी सरगोशियाँ भी याद आयी तुम्हारी.. […]

कविता

शनिवार के इंतज़ार में

अकेले रात भर एक अजनबी शहर में मेरी याद तेरे सिरहाने बैठकर तुझे जगाये रखती है…….. हर पल ,पल पल करवट बदल कर खामोश बंद निगाहों से ताका करते हो अपने सिरहाने कुछ कहते भी नही बनता चुप रहते भी नही बनता दिल में उठती है सो सो आहे अब उस से कैसे कहे…….. बस […]