बाल कविता

कौए का जाल

कुहू कुहू कोयल की सुनकर कौआ रह गया जल भुनकर। एकदिन उसने जाल बिछाया जाकर कोयल को उकसाया। उससे करने लगा लड़ाई खरी-खोटी फिर उसे सुनाई। कोयल फंसी जाल में भोली कौए की भाषा में बोली। तू-तू मैं-मैं चली देर तक दोनों में रहा न कोई फर्क। कौए ने खेला ऐसा दांव कोयल बोली कांव […]

कुण्डली/छंद

माँ

दिनभर काम-काज, घर का सम्भालती थी रातभर जागकर, हमको सुलाती माँ। माँ के जैसा साहसी ना, होगा रक्षक कोई लड़ जाती सिंह से भी, बच्चों को बचाती माँ। जिंदगी की धूप में जो, देखती झुलसता तो ममता के आंचल की, छाया कर जाती माँ। सुख-दुख भूल सारे, प्यार जो लुटाती सदा निज बलिदान को वो, […]

मुक्तक/दोहा

दोहे

झूठ-सत्य के बीच में, हुई भयंकर जंग सच दौडा़ इंसाफ को, आखिर आकर तंग।। झूठे पंच बने वहाँ, झूठा ही सरपंच झूठे सभी गवाह थे, गजब सजा था मंच।। मुझसा सच्चा ना कहीं, कहे झूठ चिल्लाय सत्य वचन की बात को, मानत कोई नाय।। पलड़ा भारी झूठ का, सत्य हुआ भयभीत घड़ियाली आंसू बहा, झूठ […]

मुक्तक/दोहा

दोहे

निश्चल शव सम ना बनो, डालो खुद में जान पर खोलो उम्मीद के, ऊंची भरो उडा़न।। जीत गए हारे हुए, सीखो उनको देख कर्मों से बढ़कर नहीं, है किस्मत की रेख।। कब तक बनकर के लता, ढूंढोगें अवलंब खुद की जडे़ जमाइये, करिये नहीं विलंब।। कठिन परीक्षा से भरा, जीवन इक संघर्ष निखरो तुम बन […]

मुक्तक/दोहा

मुक्तक

ख्वाब को आंसुओं में बहाते नहीं आस के दीप को यूं बुझाते नहीं जो चुनी मंजिलें प्राप्त उनको करों मोड़ को देख पथ छोड़ जाते नहीं। लोग कुछ भी कहे ध्यान मत दीजिये हार से जो मिला वह सबक लीजिये व्यर्थ की बात पर गौर करना नहीं लक्ष्य से ना नजर को अलग कीजिये। आस […]

गीतिका/ग़ज़ल

निवेदन

स्त्री करती तुमसे निवेदन मेरा भी सम्मान रखना।   घर को मन्दिर सा कर दूंगी दिल में मेरा स्थान रखना।   फिक्र करूंगी सदा सभी की  तुम मेरा भी ध्यान रखना।   दुख में सम्बल बनी रहूंगी दर्द का मेरे भान रखना।   भूल ना जाऊं उड़ना कहीं पंखों में मेरे जान रखना।   बंंधी […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

मुसाफिर बीच राहों में,अकेले छोड़ जाते हैं तड़फता देखकर गम में,वहीं रुख मोड़ जाते हैं। नुकीले शूल इस जग में, सदा महफूज रहते है कि कोमल फूल हर कोई, मजे से तोड़ जाते हैं। समझ ले दर्द बिन बोले, वही हमदर्द होता है दिखे जो दर्द बेदर्दी, सभी मुख मोड़ जाते हैं। भटकते उम्रभर इंसान, […]

गीतिका/ग़ज़ल

गजल

उनके झूठ पर जो मौन साध लिया हमने, लोगों को लगा कि सच मान लिया हमने। हरिश्चंद्र बने फिरते झूठों के मसीहा जो, वाकिफ नहीं है कि सब जान लिया हमने। रंग बदलते गिरगिट थोडी़ सी तो शर्म करे, असली रंग जिनका पहचान लिया हमने। बेतुकी बातें कहके भूल जाते लोग शायद, हर बात को […]

कविता

लौह सलाखें

क्यों पंख समेटे पिंजरे में, टकटकी लगाए अम्बर में। आकर प्रपंच की बातों में, खुद को सौंपा किन हाथों में। जो दर्द तेरा न जान सके, न खुशी तेरी पहचान सके। वे अपने भी कैसे अपने, जिनको चुभते तेरे सपने। आजादी तेरी खलती है, उनके दानों पर पलती है। क्यों मान लिया है भाग्य यही, […]

कविता

एकाकीपन

अब सन्नाटों की ये सन-सन लुभा रही संगीत कोई बन ना समझो इसको तन्हाई ना ही कहो इसे सूनापन भा रहा अब एकाकीपन। सुकूँ मिल रहा मन ही मन हो रहा स्वयं से ऐसा मिलन ना समझो इसको लाचारी ना ही कहो इसे पागलपन भा रहा अब एकाकीपन। विचारपूर्ण सागर के अन्दर चलता रहता अमृत-मंथन […]