अब सन्नाटों की ये सन-सन लुभा रही संगीत कोई बन ना समझो इसको तन्हाई ना ही कहो इसे सूनापन भा रहा अब एकाकीपन। सुकूँ मिल रहा मन ही मन हो रहा स्वयं से ऐसा मिलन ना समझो इसको लाचारी ना ही कहो इसे पागलपन भा रहा अब एकाकीपन। विचारपूर्ण सागर के अन्दर चलता रहता अमृत-मंथन […]
Author: नीतू शर्मा
मेरी समझदारी
वर्षों से सम्भाल रखा है अपने हृदय में मेरी समझदारी को मित्र बनाकर, मेरी हर जिद उसे सौंपकर मैं बेफिक्र हो जाती वह भी मुझे बहलाकर अपना फर्ज निभाती… किन्तु कभी-कभी यही मित्र मुझे शत्रु सी प्रतीत होती, मेरे सपनों की दुनिया उजाड़ने मानो हर बार आ जाती मेरे अरमानों का गला घोंटने मुझे समझाने-बुझाने… […]
शक्ति की विजय
वैभवी मेरे बचपन की सहेली। दोनों ने साथ ही पढाई पूरी की और एक ही दफ्तर में नौकरी भी मिल गई। दोनों में इतनी गहरी दोस्ती हो गई थी कि एक दूसरे के लिए सगी बहनों से भी बढ़कर थी। वैभवी की शादी के बाद उसे नौकरी छोड़नी पड़ी और हमारा साथ भी छूट गया। […]
आँसू की बरसात
नयन कभी जो बादल बनकर आँसू की बरसात हैं करते, मन की तप्त ज़मीं को थोड़ा शीतल,निर्मल, शान्त ये करते, अाँसू की भी चमक निराली बिजली बन पलकों पे चमकते, सिसकियाँ भर गर्जनाएं होती भोले-भाले सपने हैं डरते, नयन कभी जो बादल बनकर आँसू की बरसात हैं करते.
खुद को टटोले तो अच्छा है
झूठ मधुर मधु के जैसा है, मीठा बोले तो अच्छा है। विष समान कटु लगे सत्य, सच ना बोले तो अच्छा है। राज राज में राज बसा है, राज ना खोले तो अच्छा है। सोच-सोचकर इतना सोचा, कुछ ना सोचे तो अच्छा है। बातों के बन जाते बतंगड़, मुँह ना खोले तो अच्छा है। नुक्स […]
और सुनाओ दुनिया वालो
निज आँचल में फूल सँजोके पर-पथ कांटो से भर डालो और सुनाओ दुनिया वालों । सुनने को दो कान मिले है मन में आए वो कह डालो और सुनाओ दुनिया वालों । सहनशक्ति कितनी मत देखो चाहोे जितना आजमा लो और सुनाओ दुनिया वालों । पत्थर चेहरे और पत्थर दिल पत्थर जितने चाहे उछालो और […]
और सुनाओ दुनिया वालों
निज आँचल में फूल सँजोके पर-पथ कांटो से भर डालो और सुनाओ दुनिया वालों । सुनने को दो कान मिले है मन में आए वो कह डालो और सुनाओ दुनिया वालों । सहनशक्ति कितनी मत देखो चाहोे जितना आजमा लो और सुनाओ दुनिया वालों । पत्थर चेहरे और पत्थर दिल पत्थर जितने चाहे उछालो और […]
मुक्तक
बाहर की दुनिया के भय से, खुद पर खूब लगाए पहरे । भीतर घोर उदासी छाई, मुस्कानों से सजाएं चेहरे । शब्दों को जो तोलते हरदम, वो खामोशी क्या समझेंगें । अपनों से अनजान वो यारों, हम तो खैर पराए ठहरे । बहती नदियाँ सिमट रही है, कब तक खैर मनाए लहरें । भूले से […]
मन की बात
ये मन भोला है बड़ा, इस जग से अनजान । बोलो तो पहले करो, भली-भाँति पहचान ।। मन की बातें मत कहो, मन में रखो छुपाय । मतभेदों के अन्त का, है बस यही उपाय ।। चुभती कोई बात हो, दीजो उसे बिसार । मन की पीड़ा को कभी, समझे ना संसार ।। मनमोहन मनमीत […]
शब्द-बाण
मैं लाख जतन कर लू फिर भी… निर्मम लोगों के विषैले शब्द-बाण, कहीं ना कहीं इस मासूम हृदय को आहत कर ही देते है. उनके जहरीले बाणों का प्रत्युत्तर देने में असक्षम, जैसे-तैसे हृदय को थामकर, हरदम बचाती रहती हूँ बस ढाल बनकर… ✍🏻नीतू शर्मा©