सागर निर्झर सर नदी, धरती सुंदर रूप। रखें धरा को नम सदा, झील बावली कूप।। धरती पर उगते रहे , वृक्ष झाडियाँ बेल। प्रकृति सुंदरी रच रही, रुचिर नवल नित खेल।। उर्वर वसुधा है कहीं, कहीं उड़े है रेत। बंजर पथरी रेणुका, कहीं झूमते खेत।। धरती पोषण दे हमें, करती सदा निहाल। वन उपवन कानन […]
Author: *प्रमोद दीक्षित 'मलय'
होला महके खेत में
होला महके खेत में, सोंधी लगे मिठास। छाछ दही सह पीजिए, गन्ने का रस खास।। होला भुनता मेंड़ पर, महक उठे आकाश। मिर्चा बुकनू रायता, रखो हमेशा पास।। गेहूँ बाली भूँज कर, खाओ गुड के साथ। क्षुधा शांत कर तृप्ति दे, प्रमुदित दीनानाथ।। चना भूँज कर खाइए, ताल खेत नद तीर।। होला हर्षित है करे, […]
लगे गुलाबी धूप
फागुन में हैं गुण भरे, लगे गुलाबी धूप। सघन शीत में था बुझा, सुंदर निखरा रूप।। जमे दिवस घुलने लगे, मिला फाग का ताप। खुशियाँ बिखरी गेह में, दूर हुए संताप।। राह ताकती कामिनी, खड़ी बिछाये नैन। तप्त देह ज्यो नेह जल, मिले पिया सुख चैन।। आलस के दिन आ गये, है अलसाई देह।। धूप […]
दोहे – जीवन रंगों से बना
फगुवारों के दल सजे, नेह लुटाती फाग। चौपालें खुश हो झूमतीं, नाचें कोयल काग।। जन-जन का मन मोहते, होली के शुभ रंग। बजे मँजीरा ढोल अब, शहनाई मुरचंग।। जीवन रंगों से बना, रंग महकते खूब। आंखों को है शोभती, मृदुल दूधिया दूब।। मान रंग का हम रखें, रंग बने पहचान। रंगों से हैं जब सजे, […]
कविता गंध बिखेरती
कविता स्वप्न सँवारती, भाव भरे उर इत्र। जीवन पुस्तक में गढ़े, रुचिर सफलता चित्र।। कविता गंध बिखेरती, कविता है जलजात। बिन कविता के जग लगे, श्वास रहित ज्यों गात।। गीत सोरठा मनहरण, दोहा रोला छंद। चौपाई हरिगीतिका, श्रोता करें पसंद।। हिम सा शीतल शांत है, कभी धधकती आग।। विजयशालिनी अस्त्र है, कविता मन का राग।। […]
शब्दों की सुख छाँव में
शब्द सँवारे हृदय को, हरें सकल दुख पीर। मीत बनें ज्यों कष्ट में, शुष्क धरा को नीर। सघन प्रेम से जब रचें, शब्दों का संसार। सतत बहे तब जगत में, नेह नीर की धार।। शब्दों की सुख छाँव में, सदा मिले आराम। साधक को देते रहे, सिद्धि मधुरता नाम।। शब्दों से मत खेलिए, शब्द भरे […]
फागुन घर-घर बाँटता
मानव मन में प्रीति की, बहे सदा रसधार। अँजुरी भर-भर पीजिए, अमिय नेह हर बार।। जब समरसता की बहे, सुरभित मलय बयार।। शुचि समता सद्भाव से, उपवन सुखद बहार। वन वाटिका गाँव नगर, छायो शुभ मधुमास। अबीर गुलाल हाथ ले, फागुन रचता रास।। चौपालों में सज गये, फगुआरों के रंग। फागों की सुर-ताल में, लगे […]
जीवन उपवन सा खिले
जंगल करते हैं सदा, मानव पर उपकार। औषधियां-फल भेंटकर, दें जीवन संसार।। तरुवर माता-पिता सम, तरुवर मानव मीत। पोषण-सुख देते सदा, जीवन मधुरिम जीत।। पेड़ों को मत काटिए, देते सुखकर छांव। पेड़ बिना जीवन कहां, बंजर धरती गांव।। पौधों से जो जन करें, संतति सा व्यवहार। सुख, शांति संतुष्टि मिले, जीवन सदाबहार।। विटप धरा के […]
वर्टिकल फॉरेस्ट : गगनचुंबी इमारतों में लहलहाते जंगल
प्रकृति सृष्टि रचना का आधार है। प्रकृति आनंद का उत्स है। प्रकृति दिव्यतम है, अन्यतम है। वह प्रीतिकर स्नेह रसागार है। प्रकृति जीवन-राग का मधुर आलाप है, आलंबन है। प्रकृति की परिधि से परे कुछ भी नहीं। प्रकृति रोग-शोक नाशक है। प्रकृति प्राण प्रदायिनी अधिष्ठात्री देवी है। प्रकृति का अस्तित्व न केवल मानव अपितु समस्त […]
तुम जीवन हो
कविता की मधुरिम भाषा हो तुम। प्रेमिल हृदयों की आशा हो तुम। सौंदर्य शास्त्र का आधार सुखद, सुंदरता की परिभाषा हो तुम।। पग चिह्न बनाती तुम खास डगर। उर उपजाती उत्साह बन रविकर। थके चरण, हारे मन में हरदम, जीवन का रचती विश्वास प्रखर।। धरा में हो तुम चंद्र ज्योति विमल। जीवन तुम सुमधुर शुभ […]