छोटा सा शब्द भरोसा,ये बड़ा चमकता है। दुनियां के हर रिश्ते में, यही बसर करता है। कारोबार मे रोज़गार में, नगद में ये उधार में, हर शै से हर लम्हें से, हरसू यही गुज़रता है। है नज़र में दिल में ये, जुबां के अल्फाज़ में, फुरसत नहीं लम्हें की है, हर बात में रहता है […]
Author: *पुष्पा अवस्थी "स्वाती"
मजदूर का पसीना है
हर जगह नींव में मजदूर का पसीना है फिर भी मझधार में उसका सफ़ीना है सालो साल मेहनत से बनाता है घर होता है उसमें फिर औरों का बसर उसके लीये तो बस झोपड़ी का सीना हे फिर भी मझधार में उसका सफ़ीना है खेतों में हल चलाता मजदूरी करता है धूप में बरसात में […]
दीदार की हसरत
सुरमई रंग छा गया है फिर निगाहों में ढलने लगी है सांस भी दिल की आहों में फिर भी है इंतज़ार का निगाहों में बसर दीदार की हसरत लिये आंखें हैं राहों में रहा न वो ज़माना दिल माने न नादान अब भी तलाशता है उल्फ़त उन्हीं बाहों में यूं टीसता है दर्द ए दिल […]
कैसे बताऊं मैं तुम्हें
कैसे बताऊं मैं तुम्हें मेंरी दृष्टी का दर्पण हो तुम दिल में छुपे हर अनकहे विचारों का वर्णन हो तुम गीतों का मेंरे शब्द तुम संगीत का सुर ताल हो मेंरे कांपते होठों की इस आवाज का गुंजन हो तुम तुम भोर की पहली किरण कुंतल को सहलाते मेंरे जो श्रवण में घोल दे मिठास […]
तेरी आंखों में
कहां हो निगाहें करम ढूंढते हैं। तुम्हें रात दिन हर कदम ढूंढते हैं। अभी तो दिखाई दिये मेरे ज़ानिब, निगाहों का अपने भरम ढूंढते हैं। तेरे दिल में उतरे यूं सांसों के साथ, मिलेगा सुकूं जो सनम ढूंढते है। नहीं अब बसर है बस रहगुजर, मिले दर से जो वो रहम ढूंढते हैं। आराईश किया […]
लेखनी
मेरे हम नज़र हमसफर मेरे दर्द का बयां हो तुम रहने दे ये पर्दादरी मेंरे दास्तां की जुबां हो तुम सब छोड़ कर तन्हां गये तूने न छोड़ा साथ ख़ामोशियों में भी रही बनकर मेंरी सदा हो तुम राज़दार बनवाक२ तूने दिल का राज दिया अब कैसी पर्दादारी मेंरी हया हो तुम सब लिख दिया […]
कत्ल
ऐसे किया है कत्ल के ईमान ले गये । यारों वो जाते जाते मेंरी जान लें गये । आया न कुछ नज़र,सिवा उनकी अदाओं के, चारो चरफ फैला हुआ , जहांन ले गये । देखा जो उनका ताब तो नज़रें न टीक सकी, पल भर में छीन कर मेंरा गुमान ले गये । चेहरे के […]
असहाय नहीं है
कोमल है असहाय नहीं है शक्ति का संधान है तू आत्मरक्षिता अटल शिखर सी स्वयंसिद्धि संज्ञान है तू बढ़ते जाना तू मत रुकना दृष्टि हो गंतव्य पर तू दुर्गा काली से प्रेरित भाव रहे मंतव्य पर ध्वज रोहण सा उन्नत मस्तक शक्ति का सम्मान है तू आत्मरक्षिता अटल शिखर सी स्वयंसिद्धि संज्ञान है तू बनना […]
दहन
मारा था युगों पहले पर कहां मरण होता है सालों साल जलाते पर कहां दहन होता है अब भी तो देवी का घर घर में पूजन होता है वहीं कीसी कोने में नारी का शोषण होता है मारते हैं अब भी कन्या अस्तीत्व भ्रूण में कहीं कहीं पर उसका दहेज मरण होता है परिवार को […]
यादों का गुबार
तू न आया मौसमेँ गुल फिर से आ गया यादों का नशा फिर से मेरे दिल पे छा गया कलियों ने भी शरमा के जो घूँघट को उठाया भंवरा भी आके कानों में कुछ गुनगुना गया अंबर पे घटाएं भी फिर झूम के आई हैं बरसी कुछ इस तरह से वो याद आ गया ऐ […]