ग़ज़ल
अभी हारा नहीं हूं, गर्चे शिकस्ता ही सही। गर्दिश-ए-वक्त का मारा हूं, गुज़िश्ता ही सही। शिकस्ता पा ही सही,चल रही
Read Moreवक्त के लम्हों में, उल्फ़त का नज़ारा यूं करें दूर दुनियां से चलें आओ किनारा यूं करें बाद मुद्यत के
Read Moreआंखों में ऐसे बस गए हैं ये बरसते मौसम दीदार की ख़्वाहिश में लम्हों को गिनते मौसम यादों के कारवां
Read Moreस्वप्न में भी न तू रोना है तू शहीद की मां हौसला सबका बढ़ाना है तू शहीद की मां न
Read Moreरौशन करें चराग़ आज मुफ़लिस के घर में उम्मीदों के गुल ख़िल जाएं उनके भी दर में कुछ हम ऐसा
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