कविता

और अब ये निखर जाएंगे

आज थोड़ा बरस वो गए हैं तपिश में थोड़ी कमी आ गयी है गर्दिश ही गर्दिश नजर आ रही थी सेहरा में थोड़ी नमी आ गयी है हवाएं यहां ऐसी चलती रही तो घटाएं कोई बांध सकता नही तपती रही महि जो अब तक सुकूँ में थोड़ी जमी आ गयी है नए अंकुरों को सहारा […]

गीतिका/ग़ज़ल

दौलत छुपाना जरूरी यहाँ पे

सजने सँवरने की ज़रूरत ही क्या है दिखावा नही तो ये और क्या है कई तीर तरकस में रख कर चलना जुल्फ़े लहराने की जरूरत ही क्या है लुटेरों उच्चकों से भरी है ये दुनियां शरीफों की सुनती कहाँ है ये दुनियां दौलत छुपाना जरूरी यहाँ पे तिज़ारत दिखाने की ज़रूरत ही क्या है सरे […]

संस्मरण

लोग सरकारों को कोसना बंद कर देंगे जब अपनी गिरेबां झांक लेंगे।

आजादी से पहले देश के एक ओ भी नेता थे जिन्होंने अपनी जान पर खेल कर गुलाम देश को आजाद कराया था और भारत को एक नवजात शिशु की भांति देशवासियों को सौंप कर इस देश से हमेंशा -हमेंशा के लिये मां भारती की गोद में चिर निद्रा में सो गये, आज हमारा देश सिर्फ […]

कविता

नववर्ष यहां मंगलमय हो

नव वर्ष की नई किरन से, नया उजाला कायम हो मिटे मुफलिसी जग से,मधुरिम निवाला कायम हो नई सफलता अर्जित हो, अर्ष पे सबका ‘‘राज’’ रहे सबके जीवन में सदा यहां, सात सुरों का साज रहे चेहरे पे सुनहरी धूप खिले, माथे पे खुशी का ताज रहे खुशियों से दामन भरा रहे, कोई न मोहताज […]

कविता

हर पत्ता यहाँ का सावन से डरा है

हर शहर यहाँ का क़ातिलों से भरा है जो भी यहाँ मरा वो निग़ाहों से मरा है तिरछे वार से वो सीधा मार देते! हर पत्ता यहाँ का सावन से डरा है हर गली हर मोड़ पे जलवा है कायम शातिर बहुत हैं वो जो दिखते मुलायम आतिशी अंदाज में वो हर घड़ी रहते हर […]

कविता

कितना ज़हर भरते हैं

हमसे बेखर हैं ओ, हम जिनकी खबर रखते हैं चुपके से गुजरते ओ, हम फिर भी नजर रखते हैं सुनाते हैं जिनको ओ, अपने सफर के किस्से वही आ जातें हैं और, मुझको खबर करते हैं हम जान रहे हैं कि ओ, चाल कैसे चलते हैं क्या करेगें कब कहां, ख्याल कैसे पलते हैं सादगी […]

लेख

आज एक लाश जल रही है तो इतना शोक क्यों ?

आज लाश जलानें पर इतना शोक क्यों? आत्मा तो बहुत पहले ही मर चुकी थी आज तो शरीर मरा है! इसकी दुर्दशा पर इतना आफसोस क्यों? जी हां वर्तमान समय में स्वयंवर का दौर बहुत तेजी से अपना पांव पसारता नजर आ रहा है, त्रेतायुग, और द्वापरयुग से कलियुग का स्वयंवर कुछ भिन्न है, त्रेता […]

गीत/नवगीत

वो आंख नही थी झील कोई

सब मयखाने बेकार लगे अब नजर ही काफी थी उनकी अब होश बाकी रहा नही मय अभी बाकी थी उनकी वो आंख नही थी झील कोई देखा तो उसमें डूब गये लहरों ने मुझको बहा दिया अब इस दुनियां से ऊब गये ले चलो मुझे उस साहिल पर- जहां पे मौजे थे उनकी एक जाम […]

कविता

पूंछ जरा तू माटी से, सिकंदर की पहचान तू कर

अब सांसे केवल चलती हैं, अब नाम कहाँ ये लेती हैं जो जीत गया वो बीत गया, जो था ही नही वो मीत गया जो क़ायल थे वो घायल हैं, जो चल न सके बेहोश हुए मैं पहले ही बंजारा था, हम फिर से खानाबदोश हुए हर दयार में बयार बहे, क्यों उडूँ किसी के […]

कविता

तब तुम्हे न रही अब हमें न रही

जो पिया जा न सका वो पीना पड़ा मुझको एक एक घूंट उतार कर जीना पड़ा मुझको अब तुम्हे देख कर बड़ा आसान लग रहा फटी हुई थी जिंदगी सीना पड़ा मुझको न इश्क़ काम आया न मुश्क काम आया जो साथ दे रहे थे वो अश्क़ काम आया इस दौर दयार में जरा सी […]