जिंदा लोगों से अच्छा नदियों के सतह पर वो तैरती लाशें बालू के ढ़ेर में दबी हुई लाशें आंकड़ों से वंचित भटकती हुई लाशें बता रही हैं खामोशी में कोई धर्म नहीं कोई जाति नहीं कोई राम नहीं कोई रहीम नहीं बल्कि खतरे में है मानवता आज समझ में आया धर्म-कर्म के नाम पर लूटेरों […]
Author: रमेश कुमार सिंह 'रुद्र'
हे मां भारती
हे मां भारती.. तुम्हारे पंखों को तुम्हारे गोंद में बैठ कर कुतर-कुतर कर आहिस्ता-आहिस्ता छिन्न-भिन्न कर टुकड़ों में विभक्त कर मचा रहा तांडव तेरे ही तन से जन्मा बालक…. तुम लाचार उस मां की तरह जो अपने बेटे के समक्ष सब-कुछ देखते हुए बेबसी लिए चुपचाप बैठ जाती हैं अपलक तुम्हारे कुछ चंचल बालक लोभवश […]
अवसर
ये लाकडाउन नहीं अवसर है इसके अंदर कल-बल-छल है कितनों की रोटी सेंक रहा है कितनों की रोटी फेंक रहा है जनसभा में पास नहीं आता निजी कार्यों से ये,नहीं जाता चुनावी रैलियों से ये डरता है जनता के अरमान में रहता है ये लाकडाउन नहीं अवसर है इसके अंदर बहुत हलचल है॥ ©️रमेश कुमार […]
कोरोना
रुप विकराल कर,महामारी आ गई है, दिशाओं में अपना वो,तांडव मचा रही। आम-जन-खास-तक,नहीं पहचान रही, अपनी ऊंगली पर,सभी को नचा रही। खांसी साथ सर्दी लिए,दर्द व बुखार लिए, संक्रमित रुप ऐसी,हवा वो चला रही। दूरी बनाकर रहें,एक-दूसरे से सभी, तभी-तय-बच-पाना,यही वो बता रही॥ कोरोना से रोना नहीं,सामना करेंगे सभी, हौसला बुलंद कर,सभी जन लड़ना। सामाजिक […]
अधूरापन
जिन्दगी का हर पहलू लगता मुझे अधूरा मिलकर एकपल खुशी कभी होता नहीं पूरा क्या गम क्या हंसी है हंसी कितनी सजी हैं दुल्हन बनकर आती है जनाज़ा तरह जाती है कौन काटें ये दर्द कैसे मीटे ये दर्द आंसू बनकर निकले तड़प बनकर मचले इच्छाएं सीमाहीन ख्वाब आशाहीन चाहत की प्रबलता सीमा पार न […]
हे मानव !
हे मानव !! क्यों झूठ का गठरी लिए सर्वत्र घूम रहा है क्यों मानव होकर दे रहा मानव को ठोकर गलत भावनाओं से ग्रसित द्वेष्यता की आग में मानवता को जला डाला क्यों बनाता मानवीय आकार दिखाता एकाकार छल-कपट कुरीति द्वेष-दम्भ अवसरवादिता दुर्भावनापूर्ण अवसादों के सानिध्य में कब-तक पलोगे कब-तक चलोगे हे मानव !! अब […]
नव वर्ष हमारा आया है..
नव वर्ष हमारा आया है, खुशियों भरा फूल लाया है, सभी जगह सुगंध फैलाया है प्रकृति नव वर्ष दिखाया है। सर्दी-गर्मी के संगम में सुहानी बयार के उमंग में फूल खिले हैं सभी मन में फुर्ती दिख रहे सभी तन में। खेतों में फैली हरियाली छटा बिखेर रही निराली बागानों में नव फूल खिले हैं […]
सरस्वती वंदना
वीणावादिनी ज्ञान दायिनी ज्ञानवान कर दे…. माँ रूपसौभग्यदायिनी नव रुप भर दे…. जीवन में नव रस नव गीत नव स्वर भर दे… हंसवाहिनी श्वेतांबरी जग उज्ज्वल कर दे….. वीणापाणिनि शब्ददायिनी शब्दों से भर दे…. ज्योतिर्मय जीवन तरंगमय जीवन सभी जन प्रकाशयुक्त सभी जन ज्ञानयुक्त अंधेरी निशा को जीवों से दूर कर दे….. सत्य पथ सत्यमय […]
लगता मुझे है अब,बहकने वाले हैं (मनहरण घनाक्षरी छन्द)
चाँदनी चमक लिए,चाहने की चाह लिए दिल में चाहत भरा,क्यों लिये चल रहीं। बाल तेरे काले काले,चाल तेरे हैं निराले नयनों में दिखे मुझे,ख्वाबो में पल रहीं। ओठ हैं गुलाबी रंग,बाल छूए गोर गाल भरा मन चंचलता,भावना नम रहीं। चेहरे के सभी अंग,आभा हैं संयोग ओज छोड़ती प्रकाश पुंज,ऐसा क्यों कर रहीं॥1॥ बाल फहराये जैसे, […]
चाहत
चाँदनी चमक लिए,चाहने की चाह लिए दिल में चाहत भरा,क्यों लिये चल रहीं। बाल तेरे काले काले,चाल तेरे हैं निराले नयनों में दिखे मुझे,ख्वाबो में पल रहीं। ओठ हैं गुलाबी रंग,बाल छूए गोर गाल भरा मन चंचलता,भावना नम रहीं। चेहरे के सभी अंग,आभा हैं संयोग ओज छोड़ती प्रकाश पुंज,ऐसा क्यों कर रहीं॥1॥ बाल फहराये जैसे, […]