कविता

क्यों उठे है हाथ अबकी दुःशासनो के पक्ष मे…..

काशी हिंदू विश्वविद्यालय(BHU) में इन दिनों जो हुआ, बेहद निन्दनीय व शर्मनाक…. क्या यही अब नीति होगी देश और इस काल की वह धरा साक्षी बनेगी जहाँ भक्ति होती महाकाल की है बेटियाँ यदि मान तो क्यों हुआ यह अपमान है सिसकियाँ अनसुनी रही आखिर ये कौन सा सम्मान है चलाना चाहिए घन जिन पापियों […]

कविता

तैयारी इलाहाबाद मे (हास्य -कविता)

मिश्रित अवधी भाषा मे एक हास्य-कविता का प्रयास….. सुंदर भैया करैं तैयारी, जाइके इलाहाबाद बाप रहे अधियाँरे मे, बेटा बिजली मे आबाद सुंदर- सुंदर भोजन पकावें, खायें सुंदर भैया पिता बतावें सबके ,बेटा करत बा बड़की पढ़ैया सुंदर भैया क मन बा, करब नौकरी सरकारी चाहे बनब सेक्रेटरी सी एम क, या विभाग आबकारी रोज […]

मुक्तक/दोहा

मुस्कुराती रहे माँ….

कि गूँजती रहे हिन्दी जहाँ के कोने-कोने तक सशक्त रहे कवियों मे बालपन से वृद्ध होने तक तेरे शब्द श्रृंगार पर मोहित है दुनिया हिन्दी माँ मुस्कुराती रहे माँ जहां मे सूरज चाँद होने तक — रामेश्वर मिश्र 

कविता

सहारा दे दो……

ठूँठ हो रहा है, पूरे घर को पालने वाला फलदार वृक्ष कभी वह अकेले ही पोषक बन खड़ा था डाली डाली फल लगा था समय की मार उसको भी है वह बूढ़ा हो रहा है यह भी इच्छा के विपरित हो रहा है छाया मे उसके पलने वाले जीवन भर की गाढ़ी कमाई खाने वाले […]

कविता

अनुकूल​

इन अनंत मरुस्थल​ को देखो, धूप में तपते रेतो को देखो, सहनशीलता​ है कितनी इनमें ये तो समझो। जरा कभी इनकी शीतलता को परखो। तेज धूप​ में गर्म हो जाते हैं। शीतलता में ये शीतल हो​ जाते हैं। अनुकूल बनाते है अपने को​ ये कैसे। शीतलता थी कहां छिपायी इन्होंने। जब तक सूरज थे चमकते। […]

गीतिका/ग़ज़ल

गज़ल

लहरें कितनी उठेंगी समंदर कितना गहरा है। हर किसी को अंदाजा नहीं है। तूझे पाने की हसरत सिर्फ मुझे हैं। बर्बाद होने का सबका इरादा नहीं है। ज़हर देती हो तो बता दिया करो। अमृत पीने का मुझे भी इरादा नहीं है। सुना है धोखा देना तेरे शहर का व्यापार है। तूने भी किया वहीं […]

कविता

कविता ​- वक्त दिया है वक्त ने

बेशक! हमें, विषाद दिया है वक्त ने, परंतु हर्ष भी दिया है वक्त ने। हार दिया है वक्त ने, परंतु विजय भी दिया है वक्त ने। भ्रमित किया है वक्त ने, परंतु दिशा भी दिया है वक्त ने। निराशा दिया है वक्त ने, और अभिलाषा भी दिया है वक्त ने। अज्ञानी भी बनाया है वक्त […]