१. टिक टिक करती घड़ियाँ बोलीं, साथ समय के चलना सोने से सो जाते अवसर, मिलता कोई हल ना नींद देश की सुखद छाँव में, बतियाते हैं सपने श्रम का सूरज साथ चले तो, हो जाते हैं अपने २. अँधियारी रातों में पथ पर, दीपक एक जलाएँ बन जाए दीपों की माला, ऐसी अलख जगाएँ […]
Author: ऋता शेखर 'मधु'
मैं सबका दुलारा कृष्ण हूँ|
आज मैं…. आज मैं देवकी का दर्द यशोदा का वात्सल्य राधिके का प्रेम रुक्मिणी का खास हूँ आज मै वासुदेव की चिंता नंद का उल्लास गोपियों का माखनचोर पनघट का रास हूँ आज मैं कंस का संहारक कालिया का काल सुदामा का सखा योगमाया का विश्वास हूँ आज मैं द्रौपदी का भ्राता पार्थ का सारथी […]
देवदूत-लघुकथा
ऑपरेशन थियेटर में कल्याणी देवी की बहु गंभीर अवस्था में जा चुकी थी| डेलिवरी के लिए सबकुछ सामान्य था कि अचानक बच्चे की पोजीशन गड़बड़ हो गई| शिशु का हृदय स्पंदन मंद पड़ने लगा और माँ की स्थिति भी बिगड़ने लगी| थियेटर में जाते वक्त लेडी डॉक्टर क्षण भर के लिए कल्याणी देवी के सामने […]
पिता
पिता.. उनके कदमों पर चलकर अब उनकी ही भाषा बोल रहे जिनकी बातें तब ना समझे आदर्श वही अनमोल रहे हाथ पकड़ हटिया में जाते चनाचूर जी भर के खाते रंग बिरंगी हवा मिठाई हँसकर पापा हमें दिलाते निर्मल मन की निर्मल थाती नित नित जीवन में तोल रहे आदर्श वही अनमोल रहे क्रोध कभी […]
चार मुक्तक
1. आन बान शान से जवान तुम बढ़े चलो विघ्न से डरो नहीं हिमाद्रि पर चढ़े चलो वीर तुम तिरंग के हजार गीत गा सको शानदार जीत के प्रसंग यूँ गढ़े चलो 2. सरगम हवाओं की मुहब्बत से भरी सुन लो जरा महकी फ़िजा से फूल की तासीर को गुन लो जरा हर ओर हैं […]
बाल कविता : मैं बेचारा….
मैं बेचारा बेबस शिशु सबके हाथों की कठपुतली मैं वह करुं जो सब चाहें कोई न समझे मैं क्या चाहूँ। दादू का मै प्यारा पोता समझते हैं वह मुझको तोता दादा बोलो दादी बोलो खुद तोता बन रट लगाते मैं ना बोलूँ तो सर खुजाते। सुबह सवेरे दादी आती ना चाहूँ तो भी उठाती घंटों […]
कविता : बूँदें…
आसमान की नई कहानी धरती पर ले आतीं बूँदें तपी ग्रीष्म में भाप बनीं वो फिर बादल बन जाती बूँदें श्वेत श्याम भूरे लहंगे इधर उधर इतराती बूँदें सखी सहेली बनकर रहतीं आपस में बतियाती बूँदें नई नई टोली जब जुटती अपना बोझ बढाती बूँदें थक जातीं जब बोझिल होकर नभ में टिक ना पातीं […]
गजल
मुकाबिल आंधियों के दीप जलना भी जरूरी था मुसीबत लाख आये ख्वाब पलना भी जरूरी था अदब के साथ राहों पर चले थे हम सदा साथी वही देने लगे बाधा बदलना भी जरूरी था लगी ठोकर जमाने से कदम भी लड़खड़ाए थे हँसी में हौसलों को तब मचलना भी जरूरी था समंदर में लहर उठना […]
अतुकान्त कविता : कलम
वह नन्हा सा बालक उन्मुक्त आकाश में उड़ान का स्वप्न लिए चुनता था दूध की पन्नियाँ बीनता था टूटी काँच जमा करता बिसलरी की बोतलें जब बोरे भर जाते शान से कंधे पे उठा इस तरह से चलता जैसे कोई खजाना हाथ लगा हो बेच देता बीस रुपए किलो के भाव से अपनी जमा की […]
हिन्दी समालोचना: उद्भव, विकास तथा स्वरूप’
आलोचना या समालोचना किसी वस्तु/विषय की, उसके लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए, उसके गुण-दोषों एवं उपयुक्ततता का विवेचन करने वाली साहित्यिक विधा है। हिंदी आलोचना की शुरुआत १९वीं सदी के उत्तरार्ध में भारतेंदु युग से ही मानी जाती है। कबीरदास ने भी निंदक को नियरे रखने की बात कही है, इससे पता चलता है कि व्यक्तित्व […]