कहानी

परवाज़

            परवाज आज घर में सभी  कितने खुश थे , किरण का  रिश्ता जो पक्का हो गया था   |  सगाई की रस्म हो  रही  थी  |  नाच, गान, ढोलक , घुँघरू  सबकी आवाज से  घर में रौनक हो गयी थी  , समाँ  बँध  गया था | जैसे ही सगाई की अंगूठी   पहनाने का समय आया […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

मेरे दिल की क्या खता इस को मुहब्बत हो गयी ना करेंगे हम जफा तेरी ही चाहत हो गयी क्यूँ जमाना कह रहा रहता हूँ मैं कुछ खोया सा हम दिवाने आप के कैसी ये हालत हो गयी ये फिजायें वादियाँ सब गुनगुनाते गीत हैं फूल तितली शोख़ कलियाँ तेरी सूरत हो गयी तू बिखेरे […]

कहानी

बाल कहानी — चॉक्लेट चाचा

रूपल के पति का तबादला दिल्ली में हो गया था । बड़े शहर में जाने के नाम से ही वह तो खिल गयी थी । नया शहर, नया घर , नये तरीके का रहन-सहन । बड़ी ही अच्छी जगह अपार्टमेंट दिया था कंपनी ने । नौ मंज़िला बिल्डिंग में हवा व रौशनी की अच्छी व्यवस्था […]

बाल कहानी

बाल कहानी : नव वर्ष

आज रीना बहुत उदास थी । उसकी सभी सहेलियाँ न्यू ईयर पार्टी के लिए बाज़ार से नये कपड़े, जूते , हेयरबैंड , चूड़ियाँ आदि खरीद कर लाए थे । सब एक दूसरे को बता रहे थे कि न्यू ईयर पार्टी में वे कौन से कपड़े पहनने वाले हैं । लेकिन रीना के पास तो कोई […]

कविता

मुखौटा

हाँ तुमने मुझे देखा सदा मुस्कुराते हर उस अवसर पर जिसपे शायद खुश होना ही चाहिए नहीं देख सके तुम वह पैबंद जो लगाया था मैं ने अपने चिथड़े हुए दिल पर नहीं देखा तुमने मरहम सीने के उन ज़ख़्मों पर जो हुआ था छलनी तुम्हारी बोली के तीरों से….. देखी तुमने मेरी खूबसूरती उन […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

अनकहे अल्फाजों और झुकी पलकों में छुपी हुई कहानी कुछ खास तो है तकती हैं राहों को हर पल ये निगाहें तुम्हारा इंतजार मिलन की आस तो है गिला करो या शिकवा या फेर लो नजरें इस बेरूखी में प्यार का एहसास तो है तुम कर दो कतरा-कतरा इस दिल को धड़कते हुए सीने में […]

बाल कहानी

मित्रता में स्वार्थ कहाँ ?

रिंकी सात वर्ष की बहुत ही प्यारी बच्ची थी।लकिन थी बहुत चंचल व शैतान। स्वाभाव से थोड़ी स्वार्थी भी थी। हर रविवार को अपने पिताजी के साथ बाज़ार जाती और कोई न कोई नया खिलौना खरीद लाती। फिर वह जब बगीचे में खेलने जाती नया खिलौना ले जाती एवं किसी भी मित्र को छूने भी […]

कविता

डायरी

डायरी बचपन से ही सारी यादें सॅंजो लेती थीं चन्द पन्नों में कुछ रंगीन तितलियों की तरह कुछ अँधियारों सी स्याह कहीं खुशियों ने घेरा था कोना तो कहीं गमों को मिला हाशिया बरस बीते पहुँच गयी मैं जवानी की दहलीज पर लिखने लगी थी प्रेम कहानियाँ कुछ खट्टे-मीठे किस्से तो कुछ संवेदनाए जो छू […]