Author: *डॉ. रूपचन्द शास्त्री 'मयंक'

बाल कविता

“बच्चे होते स्वयं खिलौने”

सीधा-सादा, भोला-भाला। बचपन होता बहुत निराला।। बच्चे सच्चे और सलोने। बच्चे होते स्वयं खिलौने।। पल में रूठें, पल में मानें।

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