कविता पद्य साहित्य

जगजननी जानकी जन्मकथा

⚜️⚜️⚜️ कथा अनघ अनिवर्चनीय मैं जड़मति निकाज। हे वरदायिनी शारदा!! आप ही रखिए लाज॥ ⚜️⚜️⚜️ प्रथम भाग ********** विधि विवश थी गगन विकल धरणी शोक निमग्न। रावण के अनाचार पाशवश शुचि सत्य सब भग्न॥ बल प्रचंड निर्बाध निरंकुश जैसे काल कराल। ‘चंद्रहास’ के ग्रास थे साधक योगी, मुनि के भाल॥ दमित शमित मानवता कातर पारित […]

कविता

परशुराम की उदारता

प्रसंग – परशुराम-भीष्म संग्राम। रथ पर सवार गंगापुत्र भीष्म जब समरभुमि में भगवान परशुराम को बिना रथ, बिना कवच के ही युद्ध के लिए प्रस्तुत देखते हैं तो वो महर्षि परशुराम से रथ पर आने और कवच धारण करने का निवेदन करते हैं। तब परशुराम जी कहते हैं- अखिल धरा ही रथ ये मेरा पवन […]

धर्म-संस्कृति-अध्यात्म लेख

राम से बड़ा राम का नाम

“नाम पाहरू दिवस निशि, ध्यान तुम्हार कपाट लोचन निज पद जंत्रित, प्राण जाहि केहि बाट” लंकानगरी से लौटकर प्रभू श्रीराम को माता सीता की दशा बताते हुए पवनपुत्र हनुमान ने ये वर्णन किया था। वो बता रहे हैं कि दिन रात आपके नाम स्मरण का पहरा है, आपका ध्यान उसका दरवाजा है और उस पर […]

गीतिका/ग़ज़ल

गजल

अश्कों में बहते खाबों को किस्सों में नुमाया कर न सका तुम मेरी ना हुई मगर दिल तुझको पराया कर न सका दुनिया की अपनी बाजी है किस्मत की अपनी बाजीगरी फिर भी दिल को जंजीरों में ये कैद खुदाया कर न सका हर इक धड़कन पर काबिज है रहती है हर पल सीने में […]

सामाजिक

वृद्ध नहीं, बुद्ध

“जिंदगी जिंदादिली का नाम है।” यह केवल एक सामान्य वाक्य नहीं, एक मंत्र है। ऐसे तो जीवन के हर पड़ाव पर यह मंत्र जरूरी है किंतु वृद्धावस्था में तो यह सबसे जरूरी मंत्र है। वृद्ध होने का ये मतलब नहीं कि एक कोने में पड़े रहें और समय, समाज को कोसते हुए मृत्यु की प्रतीक्षा […]

सामाजिक

हमारे बुजुर्ग : अनमोल संपदा

तेजी से बदलती देश-काल परिस्थिति के साथ एक अवांछित कुरीति हमारे समाज में पैठ बनाती जा रही है, वो है ‘परिवार का विघटन’। बीते तीन चार दशकों से संयुक्त परिवारों का तेजी से विघटन हुआ है और अब ‘निजता’ के नाम पर एकल परिवारों में भी एकांतता पसर रही है। इन सबका तत्कालरुपेण सबसे बुरा […]

गीत/नवगीत

माटी

नित नए रंगों में ढलता हूं मैं फिर भी नहीं बदलता हूं दीपक बन जलता हूं कभी कभी कलश हो पानी धरुं कभी चाय की कुल्हड़ बन थके पथिक को धानी करूं कभी हाथी घोड़ा बैल बनूं और बच्चों के मन भाऊं मैं गुल्लक बन आज के तप से कल के सुधन बचाऊं मैं चुल्हा […]

राजनीति

आरसेप और भारत

आरसेप ( Regional Comprehensive Economic Partnership ), लगभग एक तिहाई दुनिया, तीन बड़ी बड़ी अर्थव्यवस्थाएं और आपसी व्यापारिक साझेदारी। एक तिहाई दुनिया का व्यापारिक साम्राज्य और भारत का उससे बाहर होना, क्या यह एक सशक्त राष्ट्र के रूप में हमारे लिए सुखद है? नहीं, मगर वर्तमान परिदृश्य में हमारे लिए इसमें भागीदार होना घाटे का […]

कविता

बचपन

वो दिन बचपन के अच्छे थे जब यारों संग मैदानों में घंटों खेला करते थे सर्दी गर्मी बारिश सब ठेंगे पे झेला करते थे एक दोस्त की कॉमिक्स को पढ़ते सब बारी बारी चंदा ले लेकर करते थे क्रिकेट मैच की तैयारी मिली किसी को नई सायकिल सारे खुश हो जाते थे एक टिफिन में […]

कविता

सरस्वती वंदना

सरस्वती भगवती शारदा शुक्लाम्बरी शुभकारिणी॥ जय जय माँ भयहारिणी॥ सृष्टि का लालित्य तुम्हीं से सुर लय प्राण तुम्हीं हो विद्या मेधा कला की देवी गुञ्जन गान तुम्हीं हो निर्झर के कलकल धारों का मंगल नाद तुम्हीं हो धरती  से  मेघों  की  बुँदो का संवाद तुम्हीं हो जयति जयति जगतारिणी॥ जय जय माँ भयहारिणी॥ गीता के […]