मुक्तक/दोहा

तुमको भी शुभ कामना, नया मिले फिर यार

होली की शुभकामना, सब ही सबको देत। खा पीकर हुल्लड़ करें, नहीं किसी का फेथ।।1।। रंगों की बारिस करें, प्रेमी सब हर लेत। संस्कृति के नाम पर, संस्कारों की भेंट।।2।। पवित्र यह त्यौहार है, सबको माने यार। इक दूजे को छल रहे, नर हो या फिर नार।।3।। प्राकृतिक अब हैं नहीं, रंग हुए बे मेल। […]

गीत/नवगीत

जीवन की कीमत पर देखो

सभी प्रेम के गाने गाकर, नफरत चहुँ ओर लुटाते हैं। जीवन की कीमत पर देखो, धन और पद ये जुटाते हैं।। संबन्धों के, भ्रम में, हम जीते। सुधा के भ्रम, गरल हैं पीते। कपट करें कंचन की खातिर, खुद ही खुद को, लगाएं पलीते। कंचन काया नष्ट करें नित, फिर कुछ कंचन पाते हैं। जीवन […]

गीत/नवगीत

चरित्र की परिभाषा

क्या चरित्र की परिभाषा है? समझ नहीं कुछ भी आता है। कागज के टुकड़े से व्यक्ति, चरित्रवान बन जाता है।। कदम-कदम पर झूठ बोलता। रिश्वत लेकर पेज खोलता। चरित्र प्रमाण वह बांट रहा है, जिसको देखे, खून खोलता। देश को पल पल लूट रहा जो, जन सेवक कहलाता है। क्या चरित्र की परिभाषा है? समझ […]

गीत/नवगीत

नहीं जेल, अब जेल है

चाह नहीं अब रही किसी की, सबने खेला खेल है। चाह नहीं है, हमें स्वर्ग की, नहीं जेल, अब जेल है।। कर्म कर्म के लिए करें हम। कदम कदम हैं छले, जले हम। नहीं किसी से कोई शिकायत, खुद ही खुद के साथ चलें हम। पथिकों का है आना-जाना, जीवन चलती रेल है। चाह नहीं […]

गीत/नवगीत

पैसे से सब खेल है

पैसा ही है, सार जगत का, पैसे से सब खेल है। पैसे खातिर हत्या होतीं, पैसे हित ही मेल है।। पैसे से हैं रिश्ते-नाते। प्रेम गीत पैसे हित गाते। पैसे के सब संगी साथी, पैसे से बच्चे बिक जाते। पैसा देख शादी होती हैं, षड्यंत्रों की रेल है। पैसा ही है, सार जगत का, पैसे […]

गीत/नवगीत

शोभा है गणतंत्र की

कर्म, विज्ञान, विश्वास है, निराशाओं का अंत। शोभा है गणतंत्र की, खिला हुआ है आज बसंत।। गणतंत्र नहीं सत्ता तक सीमित। सामूहिक हित में, हैं सब बीमित। गण के तंत्र को जीना सीखें, क्षण-क्षण इसके लिए ही जीवित। बासंती रंग में रंग कर के, वसुधा हित हम बनें हैं संत। शोभा है गणतंत्र की, खिला […]

कविता

तेईस का स्वागत! बाईस को टाटा

सर्दी से सब ठिठुर रहे हैं। मौसम को हम झेल रहे हैं। रूस यूक्रेन में युद्ध हो रहा, जीवन से ही खेल रहे हैं। कोरोना की आहट फिर से। नहीं किसी की चाहत फिर से। दो हजार बाईस बीत गया यूँ, तेईस की गरमाहट फिर से। आओ नई कुछ आस जगाएं। संबन्धों में गरमाहट लाए। […]

कविता

मानव बनाना है

मेरे भारत को क्या हो रहा है ? एक अपनी जिन्दगी के लिए, कईयों की जिन्दगी ले रहा है. मानव ही मानव को अपने अत्याचारों से किए है पीड़ित, गान्धी आजाद विवेकानन्द के, विश्वास भंग किए जा रहे हैं मेरा ही मन, धिक्कार रहा है मुझे, मेरे ही भारत को कोई उजाड़ रहा है. अगर […]

गीत/नवगीत

प्रेम को नहीं,  चाह प्रेम की

प्रेम पथिक हूँ, प्रेम ही पथ है, प्रेम ही है गंतव्य हमारा। प्रेम को नहीं,  चाह प्रेम की, प्रेम ही है मंतव्य हमारा।। प्रेम ही जीवन सार प्रेम का। प्रेम न करता, वार प्रेम का। देने की वश,  चाह प्रेम में, प्रेम न करे, इंतजार प्रेम का। प्रेम तो केवल प्रेम ही करता, धोखे का […]

गीत/नवगीत पद्य साहित्य

भले ही सुंदर वस्त्र तुम्हारे

गोल गोल गोलाइयाँ सुंदर, गहराइयों में समंदर हो। भले ही सुंदर वस्त्र तुम्हारे, तुम उनसे भी सुंदर हो।। फोटाे बहुत देखे हैं हमने। वार तुम्हारे सहे हैं हमने। चाह कर भी चाह न सकते, विश्वासघात देखें हैं हमने। बाहर से ना दिखलाओ केवल, दिखलाओ कैसी अंदर हो? भले ही सुंदर वस्त्र तुम्हारे, तुम उनसे भी […]