गीतिका/ग़ज़ल

आँख फेरो सर झुकाओ चुप रहो

आँख फेरो सर झुकाओ चुप रहो आह को दिल में दबाओ चुप रहो झूठ के बाज़ार में सच बोलकर भेंट मत अपनी चढ़ाओ चुप रहो फ़र्ज वो अपना निभाकर फ़ँस गया ख़ैर तुम अपनी मनाओ चुप रहो दर्द उनका देखकर, छलके हुए अश्क पलको में छुपाओ चुप रहो बेहिसी का बेबसी का हुक्म है कुछ […]

गीतिका/ग़ज़ल

रगड़े झगड़े खींचा तानी मारा मारी काए कू

रगडे झगडे खीचातानी मारा मारी काए कू कर रक्खा है अपने ऊपर शैतां भारी काए कू दो गज कपड़ा नौ मन लकड़ी काफ़ी अंतिम कारज को नाहक जोड़ रहा है दौलत इतनी सारी काए कू हो नुकसान नफ़ा जिसका आधार सरासर धंधा है धंधे को तू मान रहा है रिश्तेदारी काए कू ख़ुदगर्ज़ी रिश्तों से […]

गीतिका/ग़ज़ल

चुलबुली नमकीन सी तक़रार अब है ही कहाँ

चुलबुली नमकीन सी तक़रार अब है ही कहाँ दिल जला है आदमी दिलदार अब है ही कहाँ दर्द लेकर सौंपता था मीत को मुस्कान जो आधुनिक इस प्यार में वो प्यार अब है ही कहाँ है बिना बंधन बिना शादी मुहब्बत का चलन सात फ़ेरों की कहो दरकार अब है ही कहाँ धर्म कुर्सी और […]

गीतिका/ग़ज़ल

मज़हबी सिद्धांत की प्रचलित प्रथाओं के उलट

मज़हबी सिद्धांत की प्रचलित प्रथाओं के उलट चल पड़े किन रास्तों‌ पर हम दिशाओं के उलट हर तरफ़ उन्माद हर सू बढ़ रही हैं नफ़रतें प्रेम की सदभाव की परिकल्पनाओं के उलट की सियासत ने शुरु जब से तिजारत धर्म की हो गया शैंतान इंसां आस्थाओं के उलट धर्मों से उम्मीद क्या क्या थी जहां […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

केवल अपना कर्ज़ वसूला छोड़ दिया ये कम‌ है क्या, उसने ज़िन्दा छोड़ दिया उसके राह बदलने पर हंगामा क्यूँ तुमने भी तो अपना रस्ता छोड़ दिया हुस्न अदा जलवों का है किरदार यही दिल से खेला, तोड़ा, तन्हा छोड़ दिया प्यार वफ़ा सम्मान समर्पण अपनापन ख़ुदग़र्ज़ी में हमने क्या क्या छोड़ दिया ज़िक्र हमारा […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

जिसके मन में‌ करुणा अंतस में ईमान नहीं इंसां का है जिस्म भले ही पर इंसान नहीं उसको हो सकता हासिल सम्मान नहीं बंसल मन से जो औरों का कर सकता सम्मान नहीं आज नही तो कल हर हालत में पछताएगा जिसको अपने और पराए की पहचान नहीं लोग वही औरों‌ को कहते अज्ञानी अक्सर […]

गीतिका/ग़ज़ल

आग चूल्हों से निकलकर लग रही बाज़ार में

आग चूल्हों से निकलकर लग रही बाज़ार में क्या गज़ब है ये ख़बर है ही नही अख़बार में बेईमानी की सियाही के असर में आ गयी अब कलम है ही कहाँ अपने असल किरदार में कुर्सियों ने भीड़ की झूठी गवाही मान ली सच बहस करता रहा कानून की बेकार में नफ़रतों की द्वेष की […]

गीतिका/ग़ज़ल

वैसे तो आए आमंत्रण को ठुकराना ठीक नही

वैसे तो आए आमंत्रण को ठुकराना ठीक नही किन्तु जहाँ सम्मान नही हो उस दर जाना ठीक नही माना अभिवादन में झुकना एक रवायत है लेकिन रीढ विहीन कहे जग इतना पीठ झुकाना ठीक नही सेवा त्याग समर्पण होता है सम्बंधों का मतलब सम्बंधों को व्यापारिक अनुबंध बनाना ठीक नही जीवन के रण में अपनों […]

गीतिका/ग़ज़ल

सच का रस्ता छोड़ोगे तो क्या होगा मालूम भी है

सच का रस्ता छोड़ोगे तो क्या होगा मालूम भी है अपने पथ से भटकोगे तो क्या होगा मालूम भी है माना हद में रहकर जीना दुश्कर होता है लेकिन पार हदों के जाओगे तो क्या होगा मालूम भी है मन को मनमानी से रोकोगे तो थोड़ा दुख होगा मर्यादाएं तोड़ोगे तो क्या होगा मालूम भी […]

गीतिका/ग़ज़ल

उनके जैसे ही कस्में खाकर रख दो

उनके जैसे ही कस्में खाकर रख दो तुम भी सब इल्ज़ाम हमारे सर रख दो हँस कर हाथ मिलाओ मेरे दुश्मन से मेरे भरते जख़्मों पर नश्तर रख दो इससे पहले सच दिखलाएं आईने नादानों के हाथों‌ में पत्थर रख दो यूँ टालो मुश्किल प्रश्नों के उत्तर तुम प्रश्नों में ही प्रश्नों के उत्तर रख […]