हायकू : धरती – २
वृक्ष कटन हताहत धरती खल इंसान| सलिल लुप्त सुबकती धरती वीरुध शून्य| धरती पुत्र नीलाम की अस्मिता धन के लिए|
Read Moreवृक्ष कटन हताहत धरती खल इंसान| सलिल लुप्त सुबकती धरती वीरुध शून्य| धरती पुत्र नीलाम की अस्मिता धन के लिए|
Read Moreजेवर वृक्ष धरती हरी भरी गर्व करती| बंजर हुई हिय कर्म मानुष प्रसूता धरा| भू-गर्भ जल कराहती धरती अति
Read Moreक्रोधाग्नि में हो तो कुछ भी कर गुजरती है , स्नेह में हो तो आकाश को भी पीछे छोड़ देती
Read Moreपहला इम्प्रेशन ============= “मम्मी मम्मीईईई कहा हो आप” “क्या है छवि मैं छत पर हूँ आ रही हूँ! क्या हुआ
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