लघुकथा

लघुकथा – द्वन्द

प्रगति मैदान में पहुँचते ही शीला अचकचा गयी भीड़ को देख।आगे बढ़ी तो कई दुकाने लगी हुई थीं। किस में उसे जाना समझ ही नहीं आ रहा था। कुछ जाने पहचाने बड़े-बड़े साहित्यकार उसे दिखे। पोस्ट पर यदा-कदा कमेंट करना इस समय सरल सा लग रहा था पर आगे बढ़कर उनसे मिलना, हिम्मत ही न […]

लघुकथा

लघुकथा – खज़ाना

“पाँच सौ और हजार की नोटें बंद हो गयीं माँ, दो दिन बाद ही बैंक खुलेगा | तब इन्हें बदलवा पाऊँगा।” फोन पर बेटे से यह सुनते ही दीप्ती का चेहरा पीला पड़ गया | दो दिन कैसे करेगा ! यह पूछने के बजाय वह जल्दी से फोन रख बदहवास सी अलमारी की सारी साड़ियाँ […]

कविता पद्य साहित्य

वक्त की सीख –

आज वक्त है शहनाई का शहनाई बजा लीजिये | आज वक्त है विदाई का आँसू बहा लीजिये | आज वक्त है जीने का आशीर्वाद दीजिए | आज वक्त है खुशी का आप भी शामिल हो लीजिये | आज वक्त है लड़ाई का कफ़न बांध लीजिये | आज वक्त है अंतिम सफर का थोड़ा कंधा तो […]

कविता पद्य साहित्य

शिक्षा प्रेम की

१..शिक्षा प्रेम की पर नफरत बढ़ती रही जिन्दा थी कभी अब लाश होती रही | २..बेइज्जत नारी की भरे बाजार कर दी कोफ़्त उस कामी के प्रति जगती रही | ३..हिम्मत दिखाती तो बचा लेती शायद दिन रात बस यही सोच सोच कुढ़ती रही | ४..अहम् मार सर झुकाए खड़ी चौराहें पर बुद्धू कह हम […]

पद्य साहित्य हाइकु/सेदोका

हायकु

हायकु सृंखला-2 1-रक्त एक ही फिर भी तो लड़ते राम-रहीम। 2-घटी मर्यादा गरिमा विस्मित सी कद-पद की । 3- रंक से राजा पलटती जो बाजी राजा से रंक। 4- शूल जीवन नेक काम करें तो पथ्य में फूल । 5- जीवन-नैया चढ़ती-उतराती भव-सागर । [15/04, 9:39 AM]

कविता पद्य साहित्य

माँ तू भगवान से भी अधिक दयालु —

माँ तू भगवान से भी अधिक दयालु तेरे आँचल में रहकर सारा सुख पाया गलतियों की सजा ज़रूर देता है ईश्वर पर तू ही है जिससे हमेशा माफ़ी पाया। तेरी बखान में पूरी पोथी लिख डालूँ माँ तू भगवान से भी अधिक दयालु || तेरा आँचल है ममता से भरा भरा तेरे आँचल में ही […]

कविता पद्य साहित्य

कुछ तो नेक काम कर रहे नेता-

दर बदर फिर वोट की भीख नहीं मांग रहे नेता बल्कि हम सबके कर्तव्यों को जगा रहे नेता | आलसी निठल्ले होकर, बैठे रहते उस दिन घर हमारी अंतरात्मा को झकझोर के उठा रहे नेता | धन्नासेठों को दो कदम भी नहीं चलने की आदत होती कर्तव्य पालन करें पैदल चल-चल खुद सिखा रहे नेता […]

गीतिका/ग़ज़ल

कमतर ना समझना

विवाह बंधन तोड़ दूँ क्या अकेला तुझे छोड़ दूँ क्या? हर महीने रख पगार हाथ मायके ओर दौड़ दूँ क्या? स्नेह-मोहब्बत का है रिश्ता टकराहट में मोड़ दूँ क्या? रमेश जी खूब कमाते हैं तुझको भी यह होड़ दूँ क्या? दिल बहुत दुखाता है मेरा, तेरे नाम के व्रत तोड़ दूँ क्या? मान लो सर्वोपरी […]

कथा साहित्य लघुकथा

मन का बोझ-

अस्पताल के कॉरिडोर में स्ट्रेचर पर विवेक कराह रहा था | डॉक्टर से उसके जल्द इलाज की मिन्नतें करता हुआ एक अजनबी, बहुत देर तक डॉक्टरों और नर्सों के बीच फुटबॉल बना हुआ था। बड़ी मुश्किल से कागजी कार्यवाही करने के बाद, विवेक को आपरेशन थियेटर के अंदर ले जाया गया | अजनबी अपना दो […]

कथा साहित्य लघुकथा

सीमा –

“माँ! ऐसे गुमसुम बाहर क्यों बैठी हैं ? चलिए अंदर, टीवी पर आपका पसंदीदा नाटक आ रहा है |” “क्या नाटक देखूं बहू, घर में ही नाटक होता देख रही हूँ |” “कहना क्या चाह रही हैं माँ?” “बहू जरा नजर रख अंशुल पर | कहीं मेरी तरह, तेरी तक़दीर में भी अकेलापन न लिख […]