शब्दों को मन की गीता का मनन करने दो तो सुनने वाला और कहने वाला दोनो ही चख लेते हैं अमृत निकल जाता है पथिक दुर्गम राह से भी शब्द जो निकलते हैं मन की गीता का मनन करते हुए !!!
Author: सीमा सिंघल 'सदा'
बेहिसाब उम्मीदें !!!!
कोशिशों का एक थैला दिया था माँ ने बचपन में जिसमे बेहिसाब उम्मीदें भरी थीं तभी तो मन आज भी हार मान कर चुप बैठता नहीं है !!!! …
उत्सव के रंग !!!!
उत्सव के रंग से रंगी हो द्वार की रंगोली माँ लक्ष्मी के मङ्गल चरण हों ड्योढ़ी पर शुभ लाभ का निवास हो स्वास्तिक प्रतीक के संग उत्सव का आनन्द हो घर के कोने-कोने में दीपावली की शुभकामनाओं का प्रकाश अन्तर्मन को सदा यूँ ही आलोकमय रखे ! — सीमा ‘सदा’
माँ की ममता से !!!
माँ तुम्हारे शब्दों की विरासत मेरी हथेलियों को देती है ताक़त मन को संबल कदमों को हौसला मस्तिष्क को कभी हार कर भी नहीं हारने देना सोचती हूँ शब्दों में इतनी हिम्मत पहले तो नहीं थी जरूर तुमने अभिमंत्रित किया होगा इन्हें अपनी ममता से सुना है कि माँ की ममता से कोई पार नहीं […]
बोलती ही नहीं !!!
ये ख़ामोशी सिर्फ बोलती ही नहीं लड़ती भी है और कई बार जंग भी हो जाती है बिना किसी गोली बारूद के और सब ख़त्म हो जाता है ख़ामोशी से !!!!
बूँद बूँद गिरता नेह !!!!
सावन आता बूँद बूँद गिरता नेह मन का ! … मेहंदी सजा सावन में बहना शुभ करती ! … पावन रिश्ता बंधन है स्नेह का निभाना सदा ! … अक्षत रोली सजा थाली में राखी बहना लाई ! … चूड़ी खनके मेंहदी वाले हाँथ बाँधे जो राखी ! …
उत्सव मनाना तुम !!!!
स्वतंत्रता दिवस का उत्सव मनाना तुम तिरंगा भी फहराना पर शपथ मत लेना उसके नीचे आन बान शान की तुम्हारे शब्दों की ये गुलामी वो सह नहीं पायेगा साये में उसके छल होता तो है पर वो किसी से कह नहीं पायेगा !!! … जहाँ बेटी को जन्म देने से माँ घबराती मौत हो जाती […]
उगता हुआ सूरज !!!
बुज़दिल होने से अच्छा है मन को ताकतवर बनाया जाये कुछ घूँट हौसले के उम्मीद से भरकर जिन्दगी को रोज़ उगता हुआ सूरज दिखाया जाये — सीमा सिंघल ‘सदा’
मन का भूगोल !!!
जिंदगी के जोड़ घटाने में रिश्तों का गणित अक्सर जरूरत के वक़्त जाने क्यों शून्य हो जाता है और मन का भूगोल सब समझ कर भी कुछ नया खोजने लग जाता है।
श्रृंगार धरती का !!!!
हरियाली ये श्रृंगार धरती का उजाड़ो मत ! …. हैं वरदान धरा में पेड़ पौधे बचा लो इन्हें ! … बो देना बीज धरा की गोद सूनी प्रकृति कहे ! …. खुद तपते शीतल छाँव देते हमें वृक्ष ये! … कड़वी नीम मीठी निम्बोली देती शीतल छाँव ! …. कुल्हाड़ी मार गिराया जो पेड़ को […]