पर्यावरण के दोहे
बिगड़ा है पर्यावरण,बढ़ता जाता ताप ! ज़हरीली सारी हवा,कैसा यह अभिशाप !! पेट्रोल,डीजल जले,बिजली जलती ख़ूब ! हरियाली नित रो
Read Moreबिगड़ा है पर्यावरण,बढ़ता जाता ताप ! ज़हरीली सारी हवा,कैसा यह अभिशाप !! पेट्रोल,डीजल जले,बिजली जलती ख़ूब ! हरियाली नित रो
Read Moreहिम्मत,ताक़त,शौर्य विहंसते,तीन रंग हर्षाये हैं ! सम्प्रभु हम,है राज हमारा,अंतर्मन मुस्काये हैं !! क़ुर्बानी ने नग़मे गाये, आज़ादी का वंदन
Read Moreयुवा चेतना दे रहे,स्वामी जी सानंद ! था ‘विवेक’ पाया सदा,इसीलिये ‘आनंद’ !! किये काम,सो हैंअमर,सदा रहेंगे पास ! नव
Read Moreनया काल है,नया साल है,गीत नया हम गाएंगे । करना है कुछ नवल-प्रबल अब,मंज़िल को हम पाएंगे ।। बीत गया
Read Moreअंतर्मन में घुल गया,विष बनकर आघात ! सुबहें गहरी हो गयीं,घायल है हर रात !! धुंआ हो गयी ज़िन्दगी,हुई ख़त्म
Read Moreधुंध हो गया सारा जीवन,कुछ भी नज़र नहीं आता ! आशाएं अब रोज़ सिसकतीं,कुछ भी नज़र नहीं आता !! बाहर
Read Moreजीवन मुरझाने लगा, ऐसी चली बयार ! स्वारथ मुस्काने लगा, हुआ मोथरा प्यार !! बिकता है अब प्यार नित, बनकर के सामान !
Read More