गीतिका
टूट गई हैं सभी दीवारें, सत्ता के गलियारों में,भेष बदलकर बैठ गए हैं,कातिल पहरेदारों में। भेड़ों की चौपाल सजी है,खरगोशों
Read Moreकहाँ कहा कब हमने यह कि, हम पर विपदा भारी हैकहाँ कहा कब हमने यह कि, जीवन की दुश्वारी है
Read Moreशशि से शीतलता मृदुलता फूलों से ले केरब ने धरा को नारी तन से सजाया हैतेरी क्षमता ने धीर-वीर बलवीर
Read Moreपलते-पलते स्वप्न, नैनों को छल जाते हैंकरते-करते हवन, हाथ भी जल जाते हैं आँगन में जो रोपा था, तुलसी का
Read Moreपधारो वसंत! तुम हर साल की तरह इस बार भी बिन बुलाए आ गए? बड़े बेशरम हो भाई!! तुम ऋतुराज
Read Moreसरहद पर खूनी स्याही से, वीरों ने नाम लिखे होंगेजल-हिम-माटी के कण-कण में, वीरों के नाम छिपे होंगेधड़कन ने रिश्वत
Read Moreलेखनी!कुछ फूल श्रद्धा के भी तुम उन पर चढ़ा दो। जो धरा की गोद में ,सब कुछ लुटाकर सो गए
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