व्यंग्य कथा – कुटुम्ब भोज
फूफा फूलचंद की फुफकार और ललकार से ही गजोधर बाबू की इज्जत – आबरू बची ! राहत मिली थी !
Read Moreफूफा फूलचंद की फुफकार और ललकार से ही गजोधर बाबू की इज्जत – आबरू बची ! राहत मिली थी !
Read Moreउनका पूरा कमरा ही शोक में डूबा हुआ था और विधायक जगतलाल जमीन पर पालथी मारे बैठे छाती पीट रहे
Read Moreतुमूल बाबू की सुबह घूमने की आदत बंद नहीं हुई थी। तीस साल पहले जो आदत बनी थी, वो आज
Read Moreशमीम साहब हैरान-परेशान है,सप्ताह दिन से नेता जी को खोजते फिर रहे है,पर नेता जी है कि अपना टेबल कुर्सी
Read Moreशीत लहरी से पूरा क्षेत्र कांप रहा था । ठंड ने समस्त प्राणियों में अपना दबदबा कायम कर लिया था
Read Moreअभी अभी खबर मिली है कि लालजी साहू ने सम्प एरिया में काम ज्वाइंन कर लिया है। सुनकर मुझे विश्वास
Read Moreशहर से बाहर, पक्की सड़क के किनारे पीपल पेड़ के सामने, एक अधपक्का ब्लीडिंग के बाहर एक बड़ी सी होल्डिंग
Read Moreगांव के लालजी साहू को डी सी जनता दरबार में उपस्थित होने को कहा गया था । आज ही सुबह
Read Moreरावण दहन के दूसरे दिन ऑफिस के दूसरे कमरे में अचानक से ” गदध ! गदध ! ” दो बार
Read Moreबचपन में किसी क्लास में पढ़ा था ” पढ़ लिख कर मैं एक किसान बनूंगा ” शायद तब देश में
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